हिंसा और नफरती शब्दावली चुनाव आयुक्त की असफलता | MY OPINION by Pravesh Singh Bhadouriya

Bhopal Samachar
संविधान को बचाने के लिए, पारदर्शी रुप से राजनीतिक दल के प्रभाव के बिना चुनाव करवाने के लिए संविधान निर्माताओं ने एक "चुनाव आयोग" को संविधान में जगह दी गयी हालांकि अन्य संवैधानिक संस्थाओं से परे चुनाव आयोग की स्वयं की कोई टीम ही नहीं है। यही सबसे बड़ी कमी है और शायद इसलिए ही चुनाव आयोग शक्तिशाली होकर भी शक्तिविहीन है।

संविधान ने आर्टिकल 324 में चुनाव आयोग को तमाम शक्तियां दी हैं। जिनके बारे में सबसे ज्यादा ज्ञान शायद "शेषन जी" को ही था क्योंकि निर्विवादित रुप से वे अब तक के सबसे मजबूत मुख्य चुनाव आयुक्त थे। चुनाव आयोग को समझना होगा कि उसका काम सिर्फ चुनाव करवाना नहीं है बल्कि उसका काम देश की जनता के मन में चुनावी प्रक्रिया में रुचि पैदा करवाना भी है। यदि कहीं चुनाव सिर्फ 50-60% ही है तो इसे मुख्य चुनाव आयुक्त की असफलता के रुप में गिना जाना चाहिए। आयोग ना ही "नफरती शब्दावली" को रुकवा पा रहा है और ना ही "हिंसा" पर लगाम लगवा पा रहा है। आदर्श आचार संहिता सिर्फ "किताबी" रह गयी है क्योंकि राजनीतिक दल तो उसका पालन करते ही नहीं है।

लोकतंत्र की लाज बचाने के लिए चुनाव आयोग को कठोरतम कदम उठाने ही पड़ेंगे जैसे हाईप्रोफाइल प्रत्याशियों के निर्वाचन को निरस्त करना या फिर संबंधित राजनीतिक दल पर जुर्माने के तौर पर सैंकड़ों या हजारों में अंतिम गिनती में मिले "वोट की कटौती" करना। आयोग को राजनीतिक दलों के "चिन्ह" के निरस्तीकरण की भी कार्यवाही करना चाहिए। ऐसे ही कठोरतम कदमों से ना केवल जनता की रुचि चुनाव में होगी बल्कि लोकतंत्र को भी मजबूती मिलेगी और इसी से सही मायने में राष्ट्र मजबूत होगा।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!