शिक्षकों से भ्रष्टाचार: समाज की बुनियाद कमजोर करेगा | KHULA KHAT to EDUCATION MINISTER

कन्हैयालाल लक्षकार। भ्रष्टाचार एक सर्वव्यापी सार्वभौमिक समस्याओं में से एक है। समाज के निचले हिस्से में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई है कि अब इसको उखाड़ फेंकना नामुमकिन सा लगता है। आम जीवन में आफिस-आफिस भ्रष्टाचार का बोलबाला है। लगता है आम जनता ने इसे व्यवस्था का अंग मानकर सहज स्वीकारोक्ति दे दी है। 

शिक्षकों से भ्रष्टाचार समाज की बुनियाद कमजोर करेगा। इस वर्ग पर पीढ़ियों को सुधारने व नैतिक शिक्षा, सर्वांगीण विकास व सभ्य आचरण में ढालने का जिम्मा है। यदि शिक्षक स्वयं भ्रष्टाचार का शिकार होगा तो अपने छात्रों को दृड़ता से नैतिक साहस के साथ कैसे इसके खिलाफ खड़ा कर पायेगा ? यह अनुसंधान का विषय हो सकता है कि "शिक्षकों से भ्रष्टाचार ही शिक्षकों को अपने कर्तव्य से भटकाने में अहम रोल तो नहीं निभा रहा है ?" शिक्षक को अपने स्वत्वों को प्राप्त करने में भ्रष्टाचार के लिए मजबूर कर दिया जाता है तो उसका ज़मीर कमजोर होकर अपने कर्तव्य में लापरवाही करने लगता है जिसका खामियाजा समाज को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भुगतना पड़ता है। 

विडम्बना देखये सेवानिवृत शिक्षकों को अपने स्वत्वों को प्राप्त करने में हजारों रुपये भ्रष्टाचार देना आम बात है। आयुक्त लोक शिक्षण संचालन भोपाल से नियुक्ति दिनांक से नियमित/क्रमोन्नति वेतनमान के आदेश हुए अरसा बित गया लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में शिक्षकों को इसका लाभ शत-प्रतिशत नहीं मिला है, ऐसे और भी कई आदेश हो सकते है। आयुक्त के आदेश शिक्षा विभाग व कोषालय में शिक्षकों से भ्रष्टाचार के लिए चरागाह सिद्ध हो रहे है। इनके पालन में आयुक्त कार्यालय की कोई रूचि नहीं है। अध्यापक संवर्ग के वेतननिर्धाण में भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिल रही है। 

कर्तव्य में लापरवाही के चलते शिक्षक अनुशासनात्मक कार्रवाई व निलंबन का सामना करता है तो बहाली में जवाबदार आला अधिकारी भ्रष्टाचार लेकर बहाल कर देता है। मेरे एक परिचित सेवानिवृत शिक्षक ने निलंबन समाप्त करने में दी गई सुविधा राशि के एवज में फर्जी चिकित्सा देयक जो चिकित्सक ने 10% कमीशन पर तैयार करवाकर भुगतान करवा दिये। इस शिक्षक ने इसके बाद सेवानिवृत्ति तक इसे अतिरिक्त कमाई का हिस्सा बना लिया था। अतिथि शिक्षक की उपस्थिति, शाला संचालन में प्राप्त राशि में से फर्जी बिल, आडिट के नाम पर अवैध उगाही, एडीएम में भी यदा-कदा भ्रष्टाचार में शिक्षकों की संलिप्तता सुनने में आती है, जो हमको विचलित करती है । आयुक्त कार्यालय से विशेष अभियान चलाकर शिक्षकों के प्रकरण समय-सीमा में निराकृत कर जवाबदेही तय की जावे व सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई से नजीर बनाया जावे। 

हमें उस दिन का बेसब्री से इंतजार है जब शिक्षक समय पर अपने कर्तव्य पर तैनात होकर केवल और केवल बच्चों का सर्वांगीण विकास में भ्रष्टाचार का शिकार हुए बगैर निश्चिंत होकर कर्तव्य पूरा कर सके इसमें स्थानान्तरण भी शामिल हैं । समाज व छात्र हीत में संभव होगा जब शिक्षक व शिक्षा भ्रष्टाचार से मुक्त हो यहीं से एक आशा की किरण नजर आती है !
लेखक कन्हैयालाल लक्षकार मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष हैं। 
खुला-खत एक सार्वजनिक मंच है। यहां आप भी अपनी बात रख सकते हैं। मुद्दे उठा सकते हैं। सरकार की नीतियों की समीक्षा करते हुए जिम्मेदारों से सीधे सवाल कर सकते हैं। हमारा ईपता है: editorbhopalsamachar@gmail.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !