NAVRATRI GHAT/ KALASH STHAPANA VIDHI/ NIYAM | नवरात्रि घट/ कलश स्थापना की विधि एवं सामग्री

नवरात्रि घट स्थापना को कलश स्थापना भी कहते है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है।  इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।नवरात्र में कलश स्थापना का विशेष महत्त्व है। अश्विन शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा के दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। यह कलश पूरे 9 दिन तक निर्धारित स्थान पर रखा जाता है। पूरे 9 दिन तक इसी कलश के पास भक्त गण माता दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा अर्चना करते है।

घट/कलश स्थापना हेतु सामग्री

1. घट स्थापना के लिए कलश मिट्टी का होता है, आप सोना, चांदी या तांबा धातु से बना कलश भी उपयोग कर सकते हैं परंतु ध्यान रहे कलश स्टील, लोहा, एल्युमिनियम या अन्य किसी धातु का नहीं होना चाहिए। 
2. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल तथा गंगाजल।
3. जौ ।
4. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र।
5. जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिट्टी।
6. आम के 5 पत्ते।
7. पानी वाला नारियल।
8. नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा।
9. फूल माला।
10. मोली।
11. इत्र।
12. साबुत सुपारी।
13. दूर्वा।
14. कलश में रखने के लिए द्रव्य / सिक्के।
15. कलश ढकने के लिए ढक्कन।
16. ढक्कन में रखने के लिए अक्षत।

कलश / घट स्थापना विधि / स्थान चयन

नवरात्रि में कलश / घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिए।
कलश स्थापना के लिए अपने घर के उस स्थान को चुनना चाहिए जो पवित्र स्थान हो अर्थात घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास। यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थान का चयन कर ले तथा उसे गंगा जल से शुद्ध कर ले।

घट/ कलश | जौ पात्र का प्रयोग

सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लेना चाहिए। इस पात्र में मिट्टी की एक अथवा 2 परत बिछा लें। इसके बाद जौ बिछा लेना चाहिए। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब पुनः एक परत जौ की बिछा लें। जौ को इस तरह चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे। इसके ऊपर पुनः मिट्टी की एक परत बिछाएं।

घट/ कलश स्थापना

पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख लें। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदल कमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए।
ॐ भूरसि भूमिरस्य दितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

कलश स्थापन मंत्र

ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।

पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन, दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे। पुनः पंचपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, पाकड़ व आम) कलश के मुख पर रखें। अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें।

घट/कलश पर नारियल की स्थापना की विधि / नियम

इसके बाद नारियल पर लाल कपडा लपेट ले उसके बाद मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रख दें। नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। ।

अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं। पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

देवी-देवताओं का घट/कलश में आवाहन

भक्त को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण आदि देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करना चाहिए –
ॐ भूर्भुवः स्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ओम अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर छोड़ देना चाहिए। पुनः दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिए उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें।
कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।
तथा ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।

वरुण आदि देवताओ को 
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करे पुनः निम्न क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत रखे, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये,जल में मलय चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत समर्पित करे, फूल और फूलमाला चढ़ाये, द्रव्य समर्पित करे ,इत्र आदि चढ़ाये, दीप दिखाए, नैवेद्य चढ़ाये, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ाये, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये (समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करे तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे और अन्त में

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं नमस्कारान समर्पयामि।
इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। पुनः हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिए।
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।

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