सब सूना हो जायेगा, पानी के बिना | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नीति आयोग की रिपोर्ट की बात मानें तो भारत में 60 करोड़ से अधिक लोग ज़्यादा से लेकर चरम स्तर तक का जल दबाव झेल रहे हैं। भारत में तकरीबन ७० प्रतिशत जल प्रदूषित है, जिसकी वजह से पानी की गुणवत्ता के सूचकांक में भारत १२२  देशों में १२० वें स्थान पर है।भारत में पानी के इस्तेमाल और संरक्षण से जुड़ी कई समस्याएं हैं। पानी के प्रति हमारा रवैया ही गलत है। हम इस भ्रम में जी रहे हैं कि चाहे जितने भी पानी का दुरुपयोग कर लें, हमारी नदियों और जलाशयों में बारिश में फिर से नया पानी आ ही जाएगा। सरकार हो या जनता सब का रवैया एक जैसा है | बारिश नहीं होती तो इसके लिए हम जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को ज़िम्मेदार ठहराने लगते हैं, लेकिन पानी बचे इसके लिए कुछ करते नहीं |

देखा जाय तो १९६०  के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत के बाद से कृषि में पानी की मांग बढ़ी है। इससे भूजल का दोहन हुआ है, जल स्तर नीचे गया है। इस समस्या के समाधान के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं। जब भी बारिश नहीं होती तब संकट पैदा होता है। नदियों के पानी का मार्ग बदलने से भी समाधान नहीं हो रहा है।

पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट गंभीर संकट की ओर इशारा करती है |यह रिपोर्ट भारत में एक बड़े जल संकट की ओर इशारा कर रही है। भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में सिकुड़ते जलाशयों की वजह से इन चार देशों में नलों से पानी गायब हो सकता है। विश्व के ५  लाख बांधों के लिए पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली बनाने वाले डेवलपर्स के अनुसार भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में जल संकट 'डे जीरो' तक पहुंच जाएगा। यानी नलों से पानी एकदम गायब हो सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में नर्मदा नदी से जुड़े दो जलाशयों में जल आवंटन को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर तनाव है।मध्य प्रदेश के इंदिरा सागर बांध में गत वर्ष पानी सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था । इस कमी को पूरा करने के लिए निचले क्षेत्र में स्थित सरदार सरोवर जलाशय को कम पानी दिया गया तो काफी होहल्ला मचा था | सरदार सरोवर जलाशय में ३  करोड़ लोगों के लिए पेयजल है। पिछले महीने ही गुजरात सरकार ने सिंचाई रोकते हुए किसानों से फसल नहीं लगाने की अपील की थी।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विश्व की १७  प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि इसके पास विश्व के शुद्ध जल संसाधन का मात्र ४  प्रतिशत ही है। किसी भी देश में अगर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता १७०० घन मीटर से नीचे जाने लगे तो उसे जल संकट की चेतावनी और अगर १०००  घन मीटर से नीचे चला जाए, तो उसे जल संकटग्रस्त माना जाता है। भारत में यह फिलहाल १५४४  घन मीटर प्रति व्यक्ति हो गया है, जिसे जल की कमी की चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। नीति आयोग ने यह भी बताया है कि उपलब्ध जल का ८४  प्रतिशत खेती में, १२ प्रतिशत उद्योगों में और ४  प्रतिशत घरेलू कामों में उपयोग होता है।

देश की लगभग ५५  प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। ग्याहरवीं योजना के अंत तक भी लगभग १.३  करोड़ हैक्टर भूमि को सिंचाई के अंतर्गत लाने का प्रवधान था। इसे बढ़ाकर अधिक-से-अधिक १.४  करोड़ हैक्टर तक किया जा सकता है। इसके अलावा भी काफी भूमि ऐसी बचेगी, जहां सिंचाई असंभव होगी और वह केवल मानसून पर निर्भर रहेगी। भूजल का लगभग ६०  प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। ८० प्रतिशत घरेलू जल आपूर्ति भूजल से ही होती है। इससे भूजल का स्तर लगातार घटता जा रहा है।

दो वर्षों में मानसून की स्थिति ने देश के जल संकट को गहरा दिया है। आबादी लगातार बढ़ रही है, जबकि जल संसाधन सीमित हैं। अगर अभी भी हमने जल संरक्षण और उसके समान वितरण के लिए उपाय नहीं किए तो देश के तमाम सूखा प्रभावित राज्यों की हालत और गंभीर हो जाएगी।

कुछ काम जैसे, लोगों में जल के महत्व के प्रति जागरूकता पैदा करना, पानी की कम खपत वाली फसलें उगाना, जल संसाधनों का बेहतर नियंत्रण एवं प्रबंधन एवं जल सम्बंधी राष्ट्रीय कानून बनाया जाना | अगर पानी चाहिए तो इस दिशा में कुछ करना होगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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