कैसे मिले सबको प्राणवायु | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। देश की राजधानी नई दिल्ली सहित अनेक महानगर प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे है | कहने भारत में कुल वन क्षेत्र ८०२०८८ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का२४.३९ प्रतिशत है। वैश्विक सन्दर्भ में अगर भारत के आँकड़े को देखें, तो यह हमारे लिये राहत भरी बात है, पर ऐसा क्या हो की सबको प्राण वायु आसानी से उपलब्ध हो | प्रदूषण समाप्त हो एक वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि वन क्षेत्र के मामले में भारत विश्व में १० वें स्थान पर है। सबको प्राणवायु की सफलता के लिए नार्वे का उदहारण लिया जा सकता है।

आज से चार साल पहले तक नॉर्वे में पेड़ों की संख्या १०० साल पहले की तुलना में तीन गुना बढ़ चुकी थी। पेड़ों की कटाई पर आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाए बिना वहाँ पेड़ पौधों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक, नॉर्वे में हर साल जितने पेड़ लगाए जाते हैं, महज उसका आधा ही काटा जाता है। इस तरह दिनोंदिन पेड़ों की संख्या में इजाफा ही हो रहा है। कहा जाता है कि नॉर्वे में जितने कार्बन का उत्सर्जन होता है, उसका ६० प्रतिशत हिस्सा पेड़-पौधे ही सोख लेते हैं। इससे समझा जा सकता है कि नॉर्वे में प्रदूषण या पर्यावरण को होने वाले सम्भावित नुकसान को कम करने में पेड़ पौधे कितनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। वनों को बचाने के लिये नार्वे की सरकार ने और भी कई अहम और कठोर कदम उठाए हैं। इन्हीं में एक कदम नॉर्वे सरकार ने यह उठाया कि वहाँ के पेड़ों-जंगलों की कटाई पर पूरी तरह पाबन्दी लगा दी।

यही नहीं, नॉर्वे संसद की पर्यावरण व ऊर्जा पर स्थायी समिति ने शपथ के लिये एक अनुशंसा भी पेश की कि जिस भी उत्पाद में पेड़ों को काटकर उसका कोई भी तत्व इस्तेमाल किया जाएगा, उस उत्पाद का इस्तेमाल नॉर्वे में नहीं किया जाएगा। इस शपथ को लाने में रैनफॉरेस्ट फाउंडेशन नॉर्वे ने अहम भूमिका निभाई और इसके लिये कई वर्षों तक काम किया। इसके अलावा कई वन क्षेत्रों के संरक्षण के लिये लाखों रुपए खर्च करने की मंजूरी दी गई। यही नहीं, वनों के संरक्षण के लिये नॉर्वे सरकार ने जंगलों की कटाई पर भी पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया है। नॉर्वे ने ये सब तब किया,जब वहाँ पर्याप्त मात्रा में वन मौजूद थे। भारत में भी किया जा सकता है |

भारत में वनों को लेकर स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। पहले की अपेक्षा भारत में वनों का विस्तार हुआ है। इनमें सबसे ज्यादा इजाफा पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में हुआ है। अन्य राज्यों में बिहार,झारखण्ड और तमिलनाडु शामिल हैं। इसके विपरीत आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और कर्नाटक में वनों का क्षेत्रफल घटा है।भारत में जिन क्षेत्रों में वनों का विस्तार हुआ है, वे आदिवासी जिले हैं। इसका मतलब है कि शहर व मुफस्सिल क्षेत्रों में वनों का विस्तार नहीं हो रहा है। न केवल पर्यावरण बल्कि बारिश पर आश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता के लिये वन बेहद जरूरी है। वन न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी होना चाहिए ताकि शहरों में प्राणवायु सुलभ हो |

शहरी क्षेत्रों में सरकार होम गार्डन की शक्ल में गैर-पारम्परिक वनों का विस्तार कर सकती है। इसके लिये सरकार को चाहिए कि वह लोगों को आकर्षक ऑफर होम गार्डन तैयार करने के लिये प्रेरित करे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार और आम लोग अगर ईमानदारी से कोशिश करें, तो वक्त रहते हरियाली का क्षेत्रफल बढ़ाकर प्रदूषण जैसे मुद्दों से बेहतर तरीके से निबटा जा सकता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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