वित्त मंत्रालय और आई एल ऍफ़ एस | EDITORIAL by Rakesh Dubey

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाईनेंशिअल सर्विसेस (आईएलएफएस) एक विशालकाय वित्तीय कंपनी है, वर्तमान में आर्थिक संकट से गुजर रही है |  ये कम्पनी बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए बड़े ऋण देती है। कम्पनी द्वरा बैंकों से लिए गये ऋण की अदायगी कंपनी नहीं कर सकी और संकट में आ गई है। वर्तमान में इस कंपनी पर ९३  हजार करोड़ रुपये की विशाल राशि बकाया है। इस कंपनी के संकट में पड़ने से देश की सम्पूर्ण बैंकिंग व्यवस्था ही डूबने को हो गई थी। सरकार के दखल ने इस संकट से अर्थव्यवस्था को बचाया था। 

आईएलएफएस के अधिकारियों का तत्समय कहना था कि बुनियादी संरचना का निर्माण सरकारी उपक्रमों के लिए किया गया था जैसे सड़क का निर्माण नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साथ मिल के किया गया था। इन सरकारी उपक्रमों द्वारा समय से ऋण की अदायगी न किये जाने के कारण कंपनी संकट में पड़ गई थी। लेकिन अब सामने आ रहे तथ्यों से पता लगता है कि आईएलएफएस का संकट कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अर्थव्यवस्था की मूल कमजोरी के कारण था। इन दोनों ही कारकों की जिम्मेदारी वित्तमंत्री की बनती है। 

आईएलएफएस मूलत: सरकारी कंपनी है। इसके २५  प्रतिशत शेयर लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन के हाथ में हैं और ६ प्रतिशत स्टेट बैंक ऑफइंडिया के हाथ में हैं। ये दोनों कम्पनियां सरकारी उपक्रम हैं इसलिए इनके द्वारा नियंत्रित आईएलएफएस भी मूल रूप से सरकारी उपक्रम ही था। इस कंपनी के सरकार द्वारा निर्देशित होने का स्पष्ट प्रमाण है कि इसमें सरकारी अधिकारियों को ही प्रमुख नियुक्त किया गया है। संकट में पड़ने के कुछ माह पूर्व कंपनी के प्रमुख रवि पार्थसारथि ने इस्तीफा दे दिया था।  इसके बाद लाइफ इन्श्योरेन्स कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक हेमंत भार्गव को कंपनी का प्रमुख नियुक्त किया गया। इन्होंने भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन के ही पूर्व प्रमुख एसबी माथुर को आईएलएफएस का प्रमुख नियुक्त किया गया। लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन के पूर्व अधिकारियों की नियुक्ति बताती है कि आईएलएफएस का मूल संचालन लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन द्वारा ही  किया जाता था।

लाइफ इन्श्योरेंस कारपोरेशन पर मालिकाना हक भारत सरकार का है। अत: आईएलएफएस के संकट की जिम्मेदारी लाइफ इन्श्योरेंस कॉर्पोरेशन के माध्यम से वित्त मंत्रालय की बनती है। संकट में आने के बाद वित्त मंत्रालय ने उदय कोटक के नेतृत्व में आईएलएफएस के नये बोर्ड को गठित किया। इस नए बोर्ड द्वारा आडिट में यह बात सामने आई कि आईएलएफएस के निदेशकों ने नियम विरुद्ध लोन दिए थे।आईएलएफएस की अपनी ही कमेटी ने आगाह किया था कि लोन लेने वालों की वित्तीय स्थिति कमजोर है। लेकिन अपनी ही कमेटी की संस्तुति को नजरअंदाज करते हुए आईएलएफएस के निदेशकों ने कमजोर कम्पनियों को ऋण दे दिए।

 इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं कि वित्तीय संसार में आईएलएफएस के संकट के पूर्वानुमान व्याप्त थे। संकट में पड़ने से पहले आईएलएफएस के पूर्व निदेशक मारुति सुजुकी कम्पनी के प्रमुख आरसी भार्गव ने एक बयान में कहा था कि लोगों को वर्षों से जानकारी थी कि आईएलएफएस में संकट आएगा। दूसरा सवाल है कि आईएलएफएस द्वारा दिए गए ९१ हजार करोड़ के अन्य सही ऋण संकट में क्यों पड़े? कारण यह दिखता है कि अर्थव्यवस्था कमजोर है। हमारी आर्थिक विकास दर ७  प्रतिशत पर सम्मानजनक है।  लेकिन यह विकास बड़ी कंपनियों मात्र के माध्यम से हो रहा है।   विकास दर के टिके रहने का बुनियादी संरचना पर सीधा प्रभाव है।

आम आदमी की क्रय शक्ति की शिथिलता के कारण राजमार्गों पर यातायात की मांग कम है, टोल की वसूली कम हो रही है और ये ऋण खटाई में पड़ रहे हैं।  इसी प्रकार बिजली की मांग कम है और बिजली उत्पादन कम्पनियों को दिए गये ऋण खटाई में पड़ रहे हैं।  जब  वित्त मंत्रालय को सूचना थी कि बुनियादी संरचना की मांग में वृद्धि नहीं हो रही है लेकिन बड़ी योजनाएं लागू करके प्रभावित करने के लिए वित्त मंत्रालय ने इस जानकारी को दबाए रखा और बड़ी योजनाओं को लगातार बढ़ाता गया यद्यपि आर्थिक दृष्टि से यह सफल नहीं था।  अंतत: आईएलएफएस के संकट के लिए वित्त मंत्रालय जिम्मेदार बनता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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