NEW DELHI : बीते दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि पश्चिम बंगाल में कानून का राज किसी भी मायने में नहीं है। इन घटनाओं को देखते हुए भगवान से प्रार्थना है कि भगवान ममता को सन्मति दे एक व्यक्ति पहाड़ (जिद के) पर चढ़कर नीचे खड़े लोगों को चिल्लाकर कहता है, तुम सब मुझे बहुत छोटे दिखाई देते हो। प्रत्युत्तर में नीचे से आवाज आई तुम भी हमें बहुत छोटे दिखाई देते हो। बस! यही कहानी तब तक दोहराई जाती रहेगी और लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता रहेगा।
भारत में पहली बार ऐसा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही जांच में किसी राज्य में पुलिस और सरकार ने बाधाएं खड़ी की है। शारदा चिट फंड घोटाले में दोषी होने के संदेह में आए एक प्रमुख सर्वोच्च पुलिस अधिकारी से पूछताछ के लिये पहुंचे सीबीआई अधिकारियों को राज्य पुलिस हिरासत में लेकर कोतवाली पहुंच गयी। कोलकाता पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों के घरों को घेर लिया, इन गैरकानूनी कार्रवाईयों के चलते सीबीआई के कार्यालय के बाहर अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ा। ये घटनाएं ममता बनर्जी के इशारे पर हुई। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि न तो ममता सरकार राजनैतिक शुचिता में विश्वास रखती है, न लोकतांत्रिक मूल्यों को मान देती है और न ही सुप्रीम कोर्ट का आदर करती है। एक तानाशाही माहौल बना हुआ है।
वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच उम्मीद थी कि प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, लेकिन प्रदेश के लोग आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। स्वस्थ एवं आदर्श राजनीति इन मूल्यों से संचालित नहीं हो सकती। आज हमारी राजनीति की कड़वी जीभ ए.के. ४७ से ज्यादा घाव कर रही है। उसके गुस्सैल नथुने मिथेन से भी ज्यादा विषैली गैस छोड़ रहे हैं। राजनीतिक दिलों में जो साम्प्रदायिकता,प्रांतीयता और जातिभेद का प्रदूषण है वह भाईचारे के ओजोन में सुराख कर रहा है। राजनीतिक दिमागों में स्वार्थ का शैतान बैठा हुआ है, जो समूची राजनीति छवि एवं आदर्श को दूषित कर रहा हैं। प. बंगाल की घटनाएं ऐसी ही निष्पत्तियां हैं।
भारत का लोकतन्त्र हमारे पुरखों द्वारा नई पीढ़ी के हाथ में सौंपा गया ऐसा अनूठा तोहफा है जिसकी छाया में ही हमने पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट जगह बनाकर लोगों को चैंकाया है। इस व्यवस्था को हमेशा तरोताजा रखने की जिम्मेदारी भी हमारे पुरखों ने बहुत दूरदर्शिता के साथ ऐसी संस्थाएं बनाकर की जिससे भारत के हर नागरिक को किसी भी राजनैतिक दल की सरकार के छाते के नीचे हमेशा यह यकीन रहे कि उसके एक वोट से चुनी गई सरकार हमेशा सत्ता की पहरेदारी में कानून के राज से ही सुशासन स्थापित करेंगी। सीबीआई जैसी सर्वोच्च जांच एजेंसियों का काम यह देखने का नहीं है कि कौन नेता किस पार्टी का सदस्य है, उसका काम सिर्फ यह देखने का है कि किसने अपराध किया है क्योंकि कानून के राज का मतलब सिर्फ यही है कि कानून को अपना काम आंखें बन्द करके करना चाहिए। किसी भी राजनैतिक दल की सरकार का भी यह पवित्र कर्तव्य बनता है कि वह इस तरह की संस्थाओं का उपयोग बिना किसी राजनैतिक प्रतिशोध की भावना से इस प्रकार करे कि स्वयं उसके विपक्षी दल उसकी नीयत पर शक न कर सकें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।