किसानी : सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। ट्रांस्फोर्मिंग इन्डिया की भी रिपोर्ट आ गई है | इस रिपोर्ट ने किसानी के मामले में नीतिआयोग से किसानों को प्रति वर्ष, प्रति हेक्टेयर १५००० रुपये की राशि प्रत्यक्ष आय समर्थन के रूप में देने की अनुशंसा की है। आयोग का सुझाया उपाय कहीं राजकोषीय अडचन न साबित हो, इसके लिए आयोग ने कुछ सुझाव भी दिए है जिनमे कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली उर्वरक, बिजली, फसल बीमा, सिंचाई, ब्याज में छूट समेत हर तरह की सब्सिडी समाप्त करना शामिल है और इससे होने वाली तकरीबन २ लाख करोड़ रुपये की बचत सीधे किसानों के खाते में डाले जाने की बात भी कही है।

प्रस्ताव दो कारणों से उचित प्रतीत होता है। पहला, मौजूदा सब्सिडी का वितरण निहायत गैर किफायती अंदाज में होता है जिस कारण किसानों के खाते में प्रत्यक्ष हस्तांतरण कहीं अधिक किफायती विकल्प है। दूसरा कारण है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के उलट प्रत्यक्ष आय समर्थन से बाजार में विसंगति | वैसे इससे जुड़ा अन्य कोई नुकसान नहीं है। यह तरीका दुनिया भर में कहीं अधिक स्वीकार्य है और यह विश्व व्यापार संगठन की मांग के अनुरूप होने के साथ-साथ कहीं अधिक समावेशी और समतामूलक भी है। 

देश में इन दिनों इस बात के प्रमाण भी बढ़ रहे हैं कि “ऐसी प्रत्यक्ष नकदी समर्थन योजनाएं राजनीतिक तौर पर भी लाभदायक साबित हो रही हैं।“ तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की रैयत बंधु योजना इसका महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। तेलंगाना में कृषि कार्य करने वाले लोगों की तादाद राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। अन्य राज्यों की तरह यहां भी अब तक ढेर सारी सब्सिडी और कृषि कर्ज माफी की जाती थी। रैयत बंधु योजना सभी खेत मालिकों को प्रति एकड़ ४००० रुपये प्रदान करती है। अगर जमीन दो फसल वाली है तो यह राशि दोगुनी कर दी जाती है। हालिया चुनाव में टीआरएस की भारी जीत में इस योजना का भी प्रभाव माना जा रहा है।

कहने को इस योजना के दो अहम पहलू हैं। पहला, यह हस्तांतरण मौजूदा सब्सिडी के स्थान पर नहीं किया जाता है। दूसरा, इसका डिजाइन ऐसा है कि जमीन मालिकों को लाभ पहुंचा लेकिन भूमिहीन श्रमिक इससे वंचित रहे। ओडिशा एक अन्य राज्य है जिसने कुछ बदलाव के साथ इसे अपनाने का प्रस्ताव रखा है। ओडिशा की कालिया (कृषक असिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड ऐंड इनकम असिस्टेंस) योजना के तहत सभी छोटे और सीमांत किसानों तथा किराये पर खेती करने वाले और बटाईदारों को प्रति एकड़ प्रति सीजन ५००० रुपये की राशि देती है। 

वैसे हमारे देश में लक्षित आय समर्थन योजनाओं को लागू करना एक अहम समस्या है। इसका संबंध मौजूदा सब्सिडी को खत्म करने में आने वाली दिक्कत से है। वैसे यह बात भी साबित हो चुकी है कि आय समर्थन योजना तभी सही ढंग से काम कर सकती है जबकि हर तरह की सब्सिडी समाप्त कर दी जाए। देश में व्याप्त गरीबी और सब्सिडी को समाप्त करने में राजनेताओं की अनिच्छा को देखते हुए अधिक संभावना इसी बात की है कि आय समर्थन योजना को सब्सिडी के अलावा लागू किया जाएगा। यहां ऐसी योजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता को लेकर प्रश्न उत्पन्न होता है। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार तनाव में हैं और काफी संभव है कि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में राजकोषीय घाटे और सार्वजनिक ऋण के लिए तय लक्ष्य प्राप्त न हो पाएं।

योजना की दूसरी कमी यह है कि भारत में भूमि रिकॉर्ड डिजिटलीकृत नहीं हैं और बिना उनके इस योजना का क्रियान्वयन लगभग असंभव है। यह बहस जारी रहेगी और इस बीच सरकार को विपणन के बुनियादी ढांचे, भंडारण और खाद्य प्रसंस्करण आदि में निवेश बढ़ाने और किसानों को अपनी उपज पंजीकृत बाजार में बेचने के लिए बाध्य करने के बजाय कृषि उपज संस्थानों को सीधे बेचने देने की सुविधा देने पर विचार करना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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