१ लाख करोड़, फिर कई उद्योगपति फरार होंगे | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली । BANK ने पहले जो लोन दिए थे वो चुकता नहीं किए गए, फिर से LOAN देने के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए सरकार अपनी तरफ से बैंकों को पैसे दे रही है ताकि बाज़ार में लोन के लिए पैसे उपलब्ध हो सके| क्या यह कैपिटल इंफ्लो के नाम पर कर्ज़ माफ़ी नहीं है? यह सही है भारतीय रिज़र्व बैंक ने ११ सरकारी बैंकों को प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन की सूची में डाल दिया था | इन सभी से कहा गया था कि वे NPA खातों की पहचान करें, लोन को वसूलें, जो लोन न दे उस कंपनी को बेच दें और नया लोन देना बंद कर दें| बैंकों का एनपीए जब खास सीमा से ज़्यादा हो गया तब यह रोक लगाई गई क्योंकि बैंक डूब सकते थे | अब हंगामा हुआ कि जब बैंक लोन नहीं देंगे तो अर्थव्यवस्था की रफ्तार रुक जाएगी| सवाल यह है कि ये उद्योगपति सरकारी बैंकों से ही क्यों लोन मांग रहे हैं, प्राइवेट बैंक से क्यों नहीं लेते? सरकारी बैंक का पैसा डकार कर फरार होने की सुविधा जो है |

इनके लिए सरकार सरकारी बैंकों में एक लाख करोड़ रुपये क्यों डाल रही है? किसान का लोन माफ करने पर कहा जाता है कि फिर कोई लोन नहीं चुकाएगा| यही बात इन उद्योगपतियों से क्यों नहीं कही जाती है? सितंबर २०१८ में बैंकों का नॉन परफार्मिंग असेट ८ लाख ६९ हज़ार करोड़ का हो गया है| जून २०१८ की तुलना में कुछ घटा है क्योंकि तब एनपीए८ लाख ७४ हज़ार करोड़ था, लेकिन सितंबर २०१७ में बैंकों का एनपीए ७ लाख ३४ हज़ार करोड़ था| बैंकों का ज़्यादातर एनपीए इन्हीं उद्योगपतियों के लोन न चुकाने के कारण होता है|बैंक सेक्टर के क़र्ज़ देने की रफ्तार बढ़ी है| यह अब १५ प्रतिशत है| जो जीडीपी की रफ़्तार से डबलहैं | फिर सरकार को क्यों लगता है कि यह काफी नहीं है. बैंकों को और अधिक क़र्ज़ देना चाहिए| जब १ लाख करोड़ जब सरकारी बैंकों को मिलेगा तब वे रिज़र्व बैंक की निगरानी से मुक्त हो जाएंगे| सरकार बैंकों को १९८६ से पैसे देते रही है, लेकिन उसके बाद भी बैंक कभी पूंजी संकट से बाहर नहीं आ सके| १९८६ से २०१७ के बीच एक लाख करोड़ रुपये बैंकों में दिए गए हैं| ११ साल में एक लाख करोड़ से अधिक की राशि दी गई है| अब इतनी ही राशि एक साल के भीतर बैंकों को दी जा रही है यह सीधा-सीधा दान था और है | इसका बैंकों के प्रदर्शन में सुधार से न कोई लेना-देना था और न है |. दस लाख करोड़ का एनपीए हो गया, इसके लिए न तो कोई नेता दोषी ठहराया गया और न बैंक के शीर्ष अधिकारी. नेता हमेशा चाहते हैं कि बैंकों के पास पैसे रहें ताकि दबाव डालकर अपने चहेतों को लोन दिलवाया जा सके, जो कभी वापस ही न हो.

दस लाख करोड़ का लोन नहीं चुकाने वाले चंद मुट्ठी भर लोग मौज कर रहे हैं. उन्हें और लोन मिले इसके लिए सरकार १ लाख करोड़ सरकारी बैंकों को दे रही है| किसानों के लोन माफ़ होते हैं,कभी पूरे नहीं होते हैं, होते भी हैं तो उन्हें कर्ज़ मिलने से रोका जाने लगता है| उद्योगपतियों को लोन देने में दिक्कत नहीं है, दिक्कत है लोन नहीं चुकाने और उसके बाद भी नया लोन देने के लिए सरकारों के बिछ जाने से है| रुकिए और सोचिये क्या हम किसी और को लोन डकार कर चम्पत होने का मौका तो नहीं दे रहे ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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