दावा: इस गांव की कहानी पढ़कर 'विकास' शर्म के मारे सुसाइड कर लेगा | MP NEWS

Bhopal Samachar
ललित मुदगल/मुकेश रघुवंशी/शिवपुरी। मध्यप्रदेश में क्या कोई ऐसा है जो शिवराज सिंह को ना जानता हो। प्यार करे या नफरत, तारीफ करे या निंदा लेकिन केंद्र में शिवराज सिंह ही होता है। हजारों सरकारी स्कूलों में तो बच्चों ने भारत का प्रधानमंत्री 'शिवराज सिंह' बताया है परंतु एक गांव ऐसा भी है जहां लोगों ने बड़ी ही मासूमियत से पूछा शिवराज सिंह कौन ?, इस गांव के लोग पीएम नरेंद्र मोदी को भी नहीं जानते। दरअसल, वो किसी नेता को ही नहीं जानते, क्योंकि आजादी के बाद से अब तक कोई नेता यहां आया ही नहीं। नेता क्या, कोई सरकारी कर्मचारी भी नहीं आता। 5 साल पहले बैलगाड़ी पर बैठकर एक अधिकारी आया था, बोला चुनाव कराने आया हूं। शायद इस बार भी आएगा। 

4 नाले पार करके पहुंचते हैं इस गांव में


जिक्र मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में आने वाली कोलारस विधानसभा के एक गांव का हो रहा है। कोलारस जनपद मुख्यालय से महज 40km दूर स्थित है ग्राम पंचायत धुंआ। इसी पंचायत का एक छोटा सा ग्राम जिसका नाम है रसोई। इस गांव के दर्शन के लिए आपको दुर्गम तीर्थयात्राओं जैसी यात्रा करनी पडेंगी। कार पहुंचने की संभावना शून्य है, आपको पैदल या बाईक से जाना पडेगा। वैसे पैदल ज्यादा सुविधाजनक है। इस गांव तक मप्र सरकार की कोई सड़क नही जाती हैं, आपको इस गांव तक जाने के लिए 4 नालों से गुजरना होगा, तब जाकर आप इस गांव के दर्शन कर सकते हैं।

बच्चों को पता ही नहीं स्कूल भी होता है

यह गांव गुर्जर समाज बहुल्य गांव है, इस गांव की करीब 400 की जनसंख्या है। इस गांव का शिक्षा का स्तर मप्र में सबसे कम है, इस गांव की 80 प्रतिशत आबादी अनपढ हैं। बच्चों को यह पता नही है कि स्कूल कैसा होता हैं। यह स्कूल जैसी कोई चीज मप्र सरकार की नही हैं।

शहर आकर बच्चा पूछता है, मां क्या यहां रात नही होती ?

बिजली तो इस गांव के लिए भगवान हैं, आजादी के इतने सालों बाद तक इस गांव में ना तो भगवान आए और ना ही बिजली। जब इस गांव का बच्चा पहली बार कोलारस यह अन्य शहर जाता है तो अपनी मां से अवश्य पूछता होगा की मां यहां अंधेरा क्यों नही है? क्या यहां रात नही होती ? क्योंकि वह अपने गांव से बाहर निकल कर पहली बार देखता है कि बिजली क्या होती है, लाईट कैसे जलती है और सूरज के अतिरिक्त ओर किसी चीज से रोशनी होती है। इस गांव में गेंहू पिसवाने के लिए या तो 10 किमी दूर जाना होता है, एक डीजल पंप से चलने वाली चक्की है। कभी कभी चलती भी है। मोबाईल चार्ज कराने के लिए दूर गांव जाना होता हैं। 

मरीज स्वास्थ्य केंद्र तक जिंदा पहुंच जाए यह चुनौती है

इस गांव के निवासी राजकुमर केवट का कहना है कि मप्र सरकार का स्कूल, आंगनवाडी, शासकीय राशन की दुकान, और चिकित्सा की सुविधा यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। जननी एक्सप्रेस को बुलाओ तो वो 10 किलोमीटर पहले ही रुक जाती है। कोई बीमार हो जाए हैं तो सबसे पहले स्वास्थ्य केन्द्र तक मरीज को जिंदा पंहुचाना ही सबसे बडी चुनौती है।

ये मप्र और शिवराज के माथे का कलंक है

इसके बाद सपंर्क में नही आते है। विकास क्या होता है इस गांव का विकास ने मुंह नही देखा हैं। यह गांव भाजपा के उन्नत विकसित मप्र के माथे पर कंलक हैं। इस गांव में निवास करने वाले लोग बस जी रहे है। 

5 साल पहले एक सरकारी अधिकारी आया था

गांव के लोगों ने बताया कि 5 साल पहले एक अधिकारी बैलगाड़ी से आया था, चुनाव कराने के लिए। वो बिना स्याही का अंगूठा लगवा ले गया था। फिर कुछ देने नहीं आया। 
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