और इसके बाद भी गंगा निर्मल नहीं हुई | EDITORIAL by Rakesh Dubey

गंगा नदी में धार्मिक आस्था रखने वालों और न रखने वालों दोनों के दो सम्मिलित सवाल है  गंगा का पानी हर ओर निर्मल और स्वच्छ दिखेगा या नहीं ? यदि हाँ तो कब तक ?  गंगा अविरल कब बहेगी ? डॉ जी डी  अग्रवाल  उर्फ़ स्वामी सानंद की मौत के बाद ये सवाल आम हो हो गये हैं। वैसे जून 2014 में केंद्र सरकार ने स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के तहत नमामि गंगे परियोजना को मंजूरी दी थी। इसका मकसद गंगा में प्रदूषण रोकना और इसकी सहायक नदियों को पुनर्जीवित करना है। इस परियोजना पर करीब 200 अरब रुपये खर्च होने का अनुमान है। इनमें से करीब 64 प्रतिशत रकम सीवेज ट्रीटमेंट के बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च किया जाना है। 2016 की शुरुआत में गंगा के घाटों  के समीप लकडिय़ों से चिता जलाने से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण मंत्रालय को शवदाह के लिए वैकल्पिक उपाय लाने का निर्देश दिया था। निर्देश मौजूद हैं, जमीन पर काम जस का तस है।

कानपुर के बाद गंगा जल सबसे मैला है। गंगा को साफ करने के तहत कानपुर शहर की 400 टेनरियों से निकलने वाले गंदे पानी को भी शोधित करने की कवायद की जा रही है। इन टेनरियों से ही हर दिन करीब 1 करोड़ लीटर गंदा जल प्रवाहित होता है। यह सच नंगी आँखों से दिखाई देता है ऐसे  में टेनरी मालिकों की यह बात कैसे स्वीकार की जाये कि उनके कारखानों से गंगा में एक बूंद भी प्रदूषिण जल नहीं जाता है। कहने को एक- दो कारखानों  में संयंत्र है जहां गंदे पानी का शोधन किया जाता है और फिर इसे सिंचाई के लिए छोड़ दिया जाता है।  लेकिन ये दावे  खोखले लगते हैं। तथ्य यह है कि प्रदूषित  इलाकों में मौजूद पानी और वहां उगाए जाने वाली सब्जी प्रदूषित है। चमड़ाशोधक कारखानों में प्रदूषण से निपटने की समस्या इस तथ्य से और गहरा जाती है जब अगर ये संयंत्र बंद होते हैं तो अकेले कानपुर में 3 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार खत्म हो जाएंगे। नमामि गंगे परियोजना की समीक्षा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद में अगले साल होने वाले प्रयाग कुंभ से पहले 15 दिसंबर, 2018 से 15 मार्च, 2019 तक सभी चमड़ाशोधक कारखानों को बंद करने का आदेश दिया है।

नमाम गंगे परियोजना के तहत पूरे देश में निजी भागीदारी से 97 शहरों में गंदे पानी को साफ करने के संयंत्र स्थापित करने की योजना है। ये संयंत्र 15 साल के हाइब्रिड एन्युटी अनुबंध के आधार पर बनाए जाएंगे जहां इनका निर्माण, परिचालन और मरम्मत एक ही संस्था द्वारा की जाएगी। निर्माण पूरा होने पर केंद्र सरकार 40 प्रतिशत लागत का भुगतान करेगी जबकि बाकी राशि परियोजना की अवधि पूरी होने तक एन्युटी के तौर पर दी जाएगी। साथ-साथ परिचालन और मरम्मत का खर्च भी दिया जाएगा। नैशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन ऐक्ट, 1860 के तहत 12 अगस्त, 2011 को सोसाइटी के तौर पर पंजीकृत किया गया था। इसने राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण की क्रियान्वयन शाखा के रूप में काम किया। इस प्राधिकरण का गठन पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 के प्रावधानों के तहत किया गया था। यह सब होता रहा, बजट आता रहा खर्च होता रहा। गंगा ज्यों की त्यों बह रही है। न तो अविरल है और निर्मल है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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