पत्नि को पति के काम में दखल देने का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट | Family Conflict

इंदौर। पत्नियां अक्सर पति के काम में दखल देतीं हैं। पति की दुकान में चाहे जब धमक जातीं हैं। आॅफिस आ जातीं हैं। पति के दोस्तों से पूछताछ करतीं हैं परंतु अब हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह की गतिविधियां ना केवल अनाधिकृत हैं बल्कि प्रतिबंधित भी हैं। हाईकोर्ट ने पति के कामकाज में पत्नी को दखल नहीं देने के निचली अदालत के निषेधाज्ञा आदेश को सही ठहराया है। 

महिला ने दुकान में आने-जाने की अनुमति मांगी थी
महिला ने निचली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। महिला के वकील ने तर्क दिए कि दुकान में उसका पैसा लगा है और वह दुकान में आना-जाना चाहती है। घटना के दिन वह दुकान में बच्चे के लिए सामान लेने गई थी। साथ ही निचली अदालत पारिवारिक मामलों में दखल नहीं दे सकती।

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम एक-दो में प्रावधान
वहीं महिला के पति के वकील प्रतीक माहेश्वरी ने तर्क दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम एक-दो में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी के कामकाज में व्यवधान उत्पन्न करता है और वह न्यायालय में निषेधाज्ञा आदेश प्राप्त कर सकता है। यह नियम पारिवारिक मामलों में भी लागू हो सकता है।

हाईकोर्ट में याचिका खारिज
हाईकोर्ट इंदौर में जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की एकल पीठ ने इन तर्कों से सहमत होकर महिला की अपील खारिज कर दी। साथ ही आदेश में कहा कि निचली अदालत पारिवारिक मामलों में भी कामकाज में दखल नहीं देने संबंधी निषेधाज्ञा जारी कर सकती है।

तलाक का केस विचाराधीन
मामला महू निवासी अमित जायसवाल का है। अमित ने पत्नी के खिलाफ नवंबर 2017 को क्रूरता के आधार पर महू अदालत में तलाक लेने के लिए याचिका दायर की। इसके साथ ही निषेधाज्ञा आवेदन लगाया, जिसमें कहा कि महू में उसकी दुकान है। पत्नी दुकान पर आई और झगड़ा करते हुए दुकान से बिल, वाउचर व रुपए आदि जबरदस्ती ले गई। पहले भी दुकान पर गाली-गलौज करते हुए जबरदस्ती दो गीजर, सैनिटरी की दो शीट ले गई। यह कृत्य क्रूरता की श्रेणी में आता है। इस पर महू के एडिशनल सेशन जज ने निषेधाज्ञा जारी की थी। तलाक का केस अब भी निचली कोर्ट में चल रहा है।
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