फर्जीवाड़ा और कांग्रेस | EDITORIAL by Rakesh Dubey

मध्यप्रदेश की राजनीति का प्रमुख विपक्षी  दल चुनावी मैदान के साथ अदालती मैदान में पैतरेबाजी कर रहा हैं। उसका नुकसान किसी और को नहीं इस दल की छवि को, इसके नेताओं को और उन्हें फर्जीवाड़ा करने की सलाह देने वालों  हो रहा है। सब जानते हैं कालान्तर में इन अदालती लडाइयों का अंत माफ़ी तलाफी और खेद व्यक्त करने जैसी क्रियाएं होती है। लड़ाई में सब जायज है को मूलमंत्र मानकर न्यायालय में सच्चे- झूठे दस्तावेज पेश करने से भी गुरेज नहीं बरता जा रहा है। एक ताज़ा मामले में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ अदालत में फर्जी दस्तावेज पेश करने के जुर्म में मुकदमा दर्ज कर लिया है। 

व्यापम मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालत के आदेश पर यह मुकदमा भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में दर्ज किया गया है। कांग्रेस नेताओं के साथ व्यापम के विसलब्लोअर प्रशांत पांडे के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने कहा है कि वह व्यापम के मुद्दे पर पीछे नहीं हटेगी और बीजेपी के ऐसे हथकंडों से डरेगी भी नहीं। इस बीच पुलिस ने यह भी साफ किया है कि इस मामले में कांग्रेस नेताओं को अभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। यह सब क्या है ? अगर न्यायालय के आदेश पर पुलिस किसी के खिलाफ  गैर जमानती जुर्म में मुकदमा दर्ज करती है तो उसे अंजाम तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी पुलिस की है तो है।

मध्यप्रदेश में एक दूसरे के खिलाफ मानहानि और अन्य प्रकार के मुकदमे दर्ज कराने और उसे अंजाम तक न पहुँचाने का राजनीतिक फैशन बनता जा रहा है। इन मुकदमों की परिणति आपसी समझौतों और माफ़ी होती है। कुछ मामले तो नीचे से सर्वोच्च न्यायालय तक  भी ले जाये गये नतीजा आज तक किसी में भी नहीं निकला। हाल ही में डम्पर घोटाले में सर्वोच्च न्यायालय ने डंपर घोटाले को लेकर लगी याचिका खारिज कर दी। यह भी नीचे से उपर तक गया था। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा द्वारा लगाई गई इस याचिका में मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी की जांच की मांग की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ याचिका खारिज कर दी कि “हमें पता है मध्यप्रदेश में चुनाव है, आप जाकर चुनाव लड़िए|” इसके पहले भी ऐसे कई मामले न्यायालयों में आये और वापिस भी हुए लेकिन,फर्जी दस्तावेजों का संज्ञान लेकर पुलिस को मुकदमा दर्ज करने  आदेश और उस पर अमल पहली बार हुआ है।

फर्ज़ी वोटर के मामले में प्रदेश काग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की लम्बित याचिका पर सर्वोच्च न्यायलय सुनवाई कर रहा है। कमलनाथ ने अपनी याचिका में प्रदेश की वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में फर्ज़ी वोटर होने की बात कही है। कमलनाथ की उस याचिका पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दिया अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा है वो कांग्रेस और उसके नेताओं के बताए तरीकों के अनुसार देश में चुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं है। सवाल यह है की इस प्रवृत्ति पर कहीं तो अंकुश लगे। तथ्यों का अभाव तो क्षम्य हो सकता है। झूठे तथ्य और फर्जी दस्तावेज़ पेश करना तो अपराध ही है न।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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