दागियों के चुनाव पर पाबंदी नहीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन जारी | Criminal | Politics | Supreme court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की मांग की गई थी परंतु एक गाइडलाइन जारी कर दी गई है। जिसमें चुनाव आयोग, पार्टी और प्रत्याशी तीनों को यह बार बार बताना होगा कि प्रत्याशी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है। बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी सरकार ने इस याचिका का डटकर विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से उम्मीद है कि वो इस बारे में कानून बनाए। चुनाव आयोग से अपेक्षा की है कि वो एक निर्देश जारी करे कि कम से कम दागी नेताओं को पार्टी का चुनाव चिन्ह ना मिले। 

दागियों को पार्टियां अपना प्रत्याशी ना बनाएं

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को यह निर्देश देने को कहा जा सकता है कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को अपने चिह्न पर चुनाव न लड़ने दें। वहीं, नेताओं की वकालत के मुद्दे पर चीफ जस्टिस की बेंच ने 9 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था।

संसद में दागी सांसदों की संख्या बढ़ रही है

एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मुताबिक, 2014 में चुने गए सांसदों में से 186 सांसदों पर आपराधिक केस दर्ज था। इसके लिए एडीआर ने 543 में से 541 सांसदों के एफिडेविट का एनालिसिस किया था। एडीआर की रिपोर्ट में बताया गया कि 2004 से ऐसे सांसदों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। 2004 में 24% और 2009 में 30% सांसद ऐसे थे जिन पर आपराधिक मामले दर्ज थे।

ये रही गाइडलाइन

सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे अपराधी राजनीति में न आ सकें। 
यदि चुनाव लड़ने वाले किसी उम्मीदवार के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज है तो वेबसाइट पर उसका जिक्र करें और उसे प्रमुखता से प्रचारित भी करें। 
नामांकन दर्ज होने के बाद चुनाव आयोग मीडिया में इस संबंध में जानकारी दें कि प्रत्याशी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है। 
उम्मीदवार को नामांकन पत्र में अपने खिलाफ लगे आरोपों को बोल्ड लेटर्स में लिखना होगा। 
पार्टियों को अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लगे आरोपों की जानकारी होनी चाहिए और पार्टी की वेबसाइट पर इसका जिक्र होना चाहिए।
उम्मीदवार के खिलाफ पहले लगे आरोपों को भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए। 

इस मामले में सुनवाई को दौरान भी पीठ ने संकेत दिये थे कि मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने का अधिकार है और चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को यह निर्देश देने के लिए कहा जा सकता है कि आरोपों का सामना कर रहे लोग उनके चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ें। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस याचिका का विरोध किया था, जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जन प्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई है। नियम के मुताबिक, सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर केवल तभी रोक लगाई जाती है, जब वह आपराधिक मामलों में दोषी पाए जाते हैं।
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