वैसे ही मध्यप्रदेश का मतदाता अपने पत्ते ऐन वक्त पर खोलता है। इस बार माहौल कुछ अजब-गजब है। सोशल मीडिया तो अपनी जगह है, परम्परागत मीडिया के अनुमान भी हकीकत से बाहर दिख रहे हैं। अभी चुनाव की तारीख तय नही, उम्मीदवार का पता नहीं और तो और कांग्रेस में ताज किसके सर होगा और ठीकरा किसके सर फूटेगा अनुमान नही, पर सर्वे सरकार दोनों की बनवा रहे है। किसी को भाजपा आती तो किसी को भाजपा जाती नजर आ रही है। सत्य स्वीकार करने में शिवराज का कोई सानी नहीं, खुद को मदारी कहकर डमरू बजाने की बात खुद तो करते ही हैं, अफसरों को भी डमरू से दूर नहीं रखना चाहते। उनका डमरू बजेगा या कांग्रेस की डुगडुगी, इसमें अभी देर है। मीडिया और सोशल मीडिया में जो चल रहा है, वो तो अंधेर है। “मदारी मामू” और “मक्कार महराजा” वही से आये हैं और धडल्ले से अर्थ, अनर्थ. तोहमत और तोहफे के रूप में तैर रहे हैं।
ऐसा चुनाव पूर्व माहौल पहले नहीं देखा। सारे पैमाने, अनुमान सब ताक पर। सिर्फ प्रायोजित विज्ञापन रूपी सर्वे, घटिया राजनीतिक जुमलेबाज़ी से प्रदेश की मतदाता में भ्रम डालने की कोशिश। सच तो यह है कि भावी मुख्यमंत्री का कोई भी चेहरा पूरी 230 सीटों पर टिकट नहीं दिला सकता तो जीत दिलाने की बात तो अभी भ्रम में डालने से ज्यादा कुछ नहीं है। जो सर्वे आये हैं या जो आ रहे हैं। मध्यप्रदेश के साइज़ और सेम्पल में छोटे हैं, उनमें कोर-कसर है।
सोशल मीडिया राय बनाने और बदलने की जगह थी। इस जगह को राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने जुमलेबजी, मनमाना उपयोग, घटिया बातें और भ्रम फैलाने की मशीन बना दिया है। गोदी मीडिया विज्ञापन करके खुश है। हकीकत दूर है। ग्रामीण अंचलों से आ रही खबरें चेताने वाली है। यात्राओं में दिखती भीड़ विभिन्न योजनाओं के हितग्राहियों की होती है। मतदाता साफ़ जानता है आगे आने वाले दिन अच्छे नहीं है। जो भी सिंहासन पर बैठेगा, खाली खजाने का मालिक होगा और यहाँ- वहां हाथ पसारे घूमता रहेगा।
डमरू बजाने और डुगडुगी पीटने से प्रदेश का भला नहीं होने वाला,यात्राओं से आशीर्वाद का फार्मूला पुराना हो गया है। बेहतर है न तो खुद भटकें और न मतदाताओं को भटकायें। डमरू बजे, नगाड़ा बजे या डुगडुगी पिटे, जिस मतदाता को फैसला करना है, वो त्रिशंकु विधानसभा के मूड में अभी तक तो दिखता है आगे चाल चरित्र और चेहरे पर निर्भर करेगा। अभी तो सोशल मीडिया पर बनाये गये चेहरे मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि इसे तो बगैर विज्ञापन के हाईजेक कर लिया गया है। राजनीतिक दल इस प्रवृति से उबरें, क्योंकि इसके अगले पायदान खतरनाक हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।