प्रधानमंत्री जी, ये आंकड़े मेल क्यों नहीं खाते ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गये आंकड़ों और विभाग के आंकड़ों में फर्क क्यों आता है ? उदहारण के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की वजह से सरकारी खजाने को  लाभ का मामला ही लें। प्रधानमन्त्री के अनुसार 90000 करोड़ रुपए तक की बचत हुई, और  तकरीबन छह करोड़ छद्म लाभार्थियों को खत्म कर दिया गया है।  इसके विपरीत फर्जी या छद्म लाभार्थियों का यह आंकड़ा कहीं अधिक है। डीबीटी मिशन की वेबसाइट पर प्रदर्शित आंकड़े बताते हैं कि इस साल मार्च के अंत तक विभिन्न् योजनाओं से 8.8 करोड़ डुप्लीकेट, फर्जी/अस्तित्वहीन व अपात्र लाभार्थियों को हटा दिया गया। 6 करोड़ का यह आंकड़ा तो रसोई गैस की सबसिडी को सीधे लोगों के बैंक खातों में ट्रांसफर करने की ‘पहल योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस से हटाए गए छद्म लाभार्थियों का है। प्रश्न प्रधानमंत्री कार्यालय को भी जानकारी देने में कोताही कौन बरत रहा है।

इस मामले की ठीक से पड़ताल करने पर यह भी लगता है कि सरकारी खजाने को हुई 90000 करोड़ की यह बचत सिर्फ संदिग्ध लाभार्थियों को हटाए जाने की वजह से ही नहीं है। इस बचत में एक नहीं तीन योजनाओं का योगदान है- वे हैं ‘पहल योजना (42272 करोड़ रुपए), पीडीएस (29708 करोड़ रुपए) और मनरेगा (16703 करोड़ रुपए)। यदि हम रसोई गैस की सबसिडी को सीधे लोगों के खातों में ट्रांसफर करने संबंधी ‘पहल योजना की बात करें तो ऐसे सवाल भी उठते रहे हैं कि 2015 से लेकर 2018 के शुरुआती दौर तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में कितनी गिरावट आई और इसकी वजह से कितनी बचत हुई? दुर्भाग्य से, इसके बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि छद्म लाभार्थियों को हटाए जाने की वजह से कितनी बचत हुई और तेल की कीमतों में गिरावट के चलते कितनी? जहां तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की बात है तो तकरीबन पौने तीन करोड़ फर्जी राशन कार्डों की पहचान कर उन्हें व्यवस्था से हटाना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, लेकिन यहां पर भी यह साफ नहीं है कि 29708 करोड़ रुपए की इस बचत का कितना हिस्सा चंडीगढ़, पुड्डुचेरी और दादरा व नगर हवेली जैसे केंद्रशासित इलाकों में नकद अंतरण कार्यक्रमों से होने वाली बचत से आया। इसके अलावा उन वास्तविक हितग्राहियों की वजह से कितनी बचत हुई, जो विभिन्न् कारणों से अपना मासिक राशन नहीं ले पा रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है, प्रधानमंत्री कार्यालय से आंकड़ो का दुराव-छिपाव क्यों ?

इस मामले के न्यस्त स्वार्थी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई होना  चहिये। आकड़ों में समानता के अलावा पारदर्शिता भी होना जरूरी है। तभी जरूरतमंदों को कल्याणकारी योजनाओं का समुचित लाभ मिल सकेगा , और इसके  राजनीतिक व आर्थिक लाभ कहीं होंगे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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