भोपाल। पुलिस पर अक्सर आरोप लगते रहते हैं कि वो निर्दोष लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हे जेल भेज देती है परंतु मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के इस फैसले के बाद पुलिस को भी ऐसी कार्रवाई करते समय सोचना पड़ेगा। हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा नामजद किए गए 2 आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए सरकार को आदेशित किया है कि उन्हे क्षतिपूर्ति स्वरूप एक-एक लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। साथ ही यह भी कहा है कि यदि सरकार चाहे तो विवेचना अधिकारी के वेतन से मुआवजा की रकम वसूली कर सकती है।
निचली अदालत ने सजा सुनाई थी
दतिया के बड़ौनी इलाके में रहने वाले लक्ष्मण कुशवाहा का अपहरण हो गया था। इस मामले में राजा उर्फ दुर्गा और नंदू उर्फ नंदकिशोर इमलिया के खिलाफ अपहरण, डकैती और आर्म्स एक्ट का मामला दर्ज किया गया था। विचारण न्यायालय ने राजा और नंदू को दोषी पाते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया था। आरोपी 2006 से ही पुलिस की गिरफ्त में थे। सजा के बाद इन्हें जेल भेज दिया गया था।
हाईकोर्ट में आरोपी निर्दोष पाए गए
इस मामले में आरोपियों की ओर से कोई वकील नहीं होने के कारण विधिक सहायता प्राधिकरण ने 10 साल पहले यानी 2008 में उनकी आपराधिक अपील हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए लगाई थी। 10 साल बाद यह मामला इसी महीने सुनवाई में आया। इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अगवा हुए लक्ष्मण कुशवाह की फिरौती के बदले में दिए गए 40 लाख रुपए के लेनदेन को हकीकत से परे पाया। वहीं आरोपियों और फरियादी की आपस में पहचान पुलिस के द्वारा कराई गई, जो कहीं से भी उचित नहीं थी। सिर्फ मध्यस्थ के बयान के आधार पर राजा और नंदू को आरोपी बनाया गया था और इसके लिए कोई प्रमाण भी नहीं पेश किया गया।
विवेचना अधिकारी से रकम की वसूली कर सकती है सरकार
हाईकोर्ट ने इस मामले में राजा व नंदू को 12 साल जेल में बिताने के बाद अब रिहा करने के आदेश दिए हैं और उन्हें सरकार से एक-एक लाख रुपए का मुआवजा देने के भी आदेश दिए हैं। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार चाहे तो विवेचना अधिकारी की गलती मिलने पर यह रकम उससे भी वसूली जा सकती है और पुलिस विवेचना में ऐसे तथ्यों को शामिल करें, जिससे कोई निरपराध व्यक्ति दोषी होकर जेल नहीं पहुंचे। इसके लिए उन्होंने सरकार को एक जांच के लिए सेंटर खोलने की सलाह दी, जहां विवेचना अधिकारियों को ट्रेंड किया जा सके।
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