
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि बेवसाइट पर केवल 3 जानकारियां मिल रहीं हैं, बयाना राशि कितनी जमा करना है। कुल टर्नओवर कितना होना चाहिए और संयुक्त रूप से कोई बिडर टेंडर में हिस्सा नहीं ले सकता। इसमें कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि काम क्या करना है और कितने का है? इससे पूरी टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर ही सवालिया निशान लग गया है।
जिसे देखना है फीस जमा करे
इस मामले में संजय दुबे, प्रमुख सचिव, श्रम विभाग का बयान आया है। उन्होंने कहा है कि 500 पेज का फाॅर्म है, इसलिए अपलोड नहीं किया। अन्य विभाग ऐसा क्यों करते हैं? यह नहीं कह सकता। किसी को टेंडर लेना है तो दस हजार रुपए फीस जमा करे और देख ले।
फार्म 500 पेज का हो या 5000 पेज का आॅनलाइन में दिक्कत नहीं होती
इधर आईटी विशेषज्ञ कपिल शर्मा का कहना है कि किसी भी बेवसाइट पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने पेज की पीडीएफ फाइल अपलोड कर रहे हैं। किसी भी पेज का एक बार यूआरएल बन गया फिर आप उस पर जितने पीडीएफ पेज चाहें अपलोड कर सकते हैं। आप उसे एडिट भी कर सकते हैं। अपलोडिंग या डाउनलोडिंग में आसानी हो तो 50-50 पेज के 10 सेट बनाकर एक ही वेबपेज पर अपलोड कर सकते हैं।
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