
उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट किए हैं। अरुण यादव ने लिखा है:
दशकों तक मेरे पूज्य पिता और श्री कमलनाथ जी के परस्पर सगे भाइयों वाले पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। राहुल जी को संबोधित पत्र में उनके द्वारा मेरे पिताश्री के सम्मान में प्रयुक्त भाषा उनकी दिली भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जिसे भाजपा पचा नहीं पा रही है। इसके बाद उन्होंने लिखा:
मेरे पूज्य पिता और परिवार ने अपनी समूची राजनैतिक-पारिवारिक ताकत साम्प्रदायिक, अधिनायकवादी और तानाशाही प्रवर्तियों से लड़ने में झौकी है, उस विरासत को हम विस्मृत कैसे कर सकते हैं।
क्यों नाराज हैं अरुण यादव
दरअसल, कमलनाथ ने योजनाबद्ध तरीके से अरुण यादव की कुर्सी छीन ली। कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से कुछ दिन पहले यह खबर मीडिया में लीक हुई थी। अरुण यादव दिल्ली गए और बातचीत की। बताया जा रहा है कि उन्होंने कमलनाथ से भी बात की। सभी ने खबर को निराधार बताया। अरुण यादव अश्वस्त होकर मप्र लौट आए और फिर अचानक उन्हे पता चला कि आज से वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नहीं है। दूसरी बड़ी बात यह कि अरुण यादव क्या कोई भी बड़े अपने स्वर्गवासी पिता की पुण्यतिथि को केवल वोट जुटाने का साधन तो कतई नहीं मान सकता।
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