
50 वर्षीय भय्यूजी महाराज उर्फ उदय पिता विश्वासराव देशमुख ने प्राथमिक शिक्षा दीप्ति कॉन्वेंट व उच्च शिक्षा जवाहरलाल नेहरू कॉलेज शुजालपुर में प्राप्त की थी। जन्म 24 अप्रैल 1968 को शुजालपुर में हुआ था। पुश्तैनी मकान वार्ड नंबर दो दिगंबर जैन मंदिर के पास स्थित है। इनके पिता विश्वासराव देशमुख को-ऑपरेटिव बैंक के महाप्रबंधक थे। पुश्तैनी गांव अख्त्यारपुर में है। उनके पिता अख्त्यारपुर के मालगुजार भी थे। पिताजी के निधन के बाद समाधि भी गांव में भय्यू महाराज ने बनवाई थी। माताजी कुमुदनीदेवी भय्यूजी महाराज के साथ ही इंदौर में ही रह रही हैं। दो बहनें रेणुका व अनुराधा हैं जिनका विवाह हो चुका है। भय्यू महाराज का पहला विवाह औरंगाबाद (महाराष्ट्र) निवासी माधवी देशमुख से हुआ था। इनकी एक बेटी कुहू (18) है, जो अभी पुणे में है। पहली पत्नी का निधन 1995 में हो गया।
शुजालपुर में किया था टार्च एजेंसी और दूध डेयरी का व्यापार
उच्च शिक्षा के बाद भय्यू महाराज ने शुजालपुर में टॉर्च की एजेंसी ली थी। इसके बाद बकरी पालन के साथ दूध डेयरी का भी काम किया, लेकिन यहां मन नहीं लगने पर 23 साल पहले 1995 में इंदौर चले गए और वहीं के हो गए।
इंदौर में बने भय्यूजी महाराज
उदय देशमुख 1995 में शुजालपुर छोड़कर इंदौर चले गए थे, जहां उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ और वह उदय देशमुख से आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज हो गए। पहली पत्नी की मौत के बाद उन्होंने शिवपुरी की डॉ. आयुषी शर्मा से 30 अप्रैल 2017 को दूसरा विवाह कर लिया था। दूसरी पत्नी उनके साथ रहती थी। हाल ही में उन्हें प्रदेश सरकार ने राज्य मंत्री का भी दर्जा दिया था।
बाल सखा को नहीं हो रहा विश्वास
भय्यू महाराज की मौत का पूरे शुजालपुर के लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है। मौत के बाद समूचे शुजालपुर के लोग स्तब्ध हैं। उनके बाल सखा एडवोकेट आलोक श्रीवास्तव कहते हैं हमें विश्वास नहीं हो ऐसी घटना हो सकती है या भय्यू महाराज ऐसा कदम उठा सकते हैं। लंबे समय के संघर्ष के बाद आध्यात्मिक रूप से लोगों को सुधारने वाला खुद टूट जाए। इस बात का विश्वास नहीं हो रहा।
शुजालपुर को दी सौगातें
जल संरक्षण के मामले में अनेक निर्माण करवाए। सर्वोदय परिवार के ट्रस्ट के मामले में लोगों को प्रेरित कर तालाब खुदवाए जा रहे थे। ट्रस्ट ने शुजालपुर नपा को शव वाहन भी दिया है। महाराष्ट्र में भी भय्यू महाराज ने जल संरक्षण के प्रति लोगों को सजग किया था और अनेक स्थानों पर तालाब उनकी स्मृति के रूप में नजर आ रहे हैं।
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