न्याय की पैरोकारी | EDITORIAL by RAKESH DUBEY

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। जस्टिस चेलमेश्वर जाते-जाते एक मिसाल और कई सवाल खड़े कर गये हैं। मिसाल, सेवानिवृत्ति के साथ सरकारी बंगले का परित्याग है तो सवाल उससे बड़ा है। उनका सवाल भी आम भारतीय की तरह न्यायपालिका नामक संस्‍था की विश्वसनीयता के संकट से है। उनका मानना है कभी कभी यह विश्वसनीयता संकट में आती रही है और सुधार न होने पर आती रहेगी। जस्टिस जे. चेलमेश्वर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के खिलाफ बगावत करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चार न्यायाधीशों में शामिल थे और  अब सेवानिवृत्त होते ही अपने घर विजयवाड़ा लौट गये हैं और जाते-जाते यह एलान भी कर गये हैं कि वे किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं होंगे।

सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में 12 जनवरी को शामिल रहे जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा, 12 जनवरी को जो हुआ अभूतपूर्व था। अभूतपूर्व घटनाओं के अभूतपूर्व परिणाम होते हैं। चेलमेश्वर ने कहा कि वह सिस्टम से लड़ रहे थे और न्यायपालिका के साथ समस्याएं आज भी बनी हुई है। उस दिन अर्थात 12 जनवरी को समस्या क्या थी?

सीपी-एम नेता और राज्य सभा के सदस्य डी राजा के उनके घर जाकर उनसे मिले थे। अब चेलमेश्‍वर कहते हैं, 'ये बात अनावश्यक है कि उस रोज मुझसे कौन मिला और कौन नहीं मिला। इससे अधिक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि, जो पावर में हैं वो किससे और क्‍यों मिल रहे हैं? न्यायिक अनुशासन में यह एक गंभीर मुद्दा है। न्यायधीश निचले न्यायालय को हो या सर्वोच्च न्यायालय का, सामन्य शिष्टाचार भेंट और घर बुलाकर या घर जाकर मिलने में बेहद अंतर है। अनुशासन की यह बारीक रेखा सबके लिए है। उसे किसी के लिए इधर से और किसी के लिए उधर से देखना न्यायसंगत नहीं है। इस पूरे प्रकरण में दृष्टिकोण विभेद पहले दिन से था और आज भी है। “इस दृष्टिकोण विभेद को दूर करने फार्मूला माननीय सर्वोच्च न्यायालय के पास ही है। उसे न्यायाधीश के आचरण सम्बन्धी अपने मार्गदर्शी नियमों विश्लेष्ण और व्याख्या, इस पारदर्शी पद्धति से करना चाहिए कि आमजन न्यायपालिका से बिना किसी भय के भेंट कर सके और यह विश्वास कर सके कि उसके विषय में आया निर्णय ही न्याय है। इसमें किसी पक्षपात की बात सोचना निरर्थक है।

जस्टिस चेलमेश्वर की यह बात भी रेखांकित करने योग्य है कि “हर सरकार, चाहे मौजूदा सरकार हो या कोई और। यहां तक अमेरिका , जिसके एक  पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट ने कहा था कि अदालत को पैक करो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका की स्वतंत्रता नितांत आवश्यक है। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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