भाजपा से ज्यादा मोदी विरोधी समीकरण | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2019 के चुनाव ज्यादा दूर नहीं है। जो नये समीकरण बन रहे हैं, वे भाजपा के विरोध से ज्यादा नरेंद्र मोदी के विरोध में दिखते हैं। गैर भाजपाई सरकारों की बात छोड़ थोडा पीछे अर्थात 2014 में जाएँ, तो नरेंद्र मोदी को कुछ भाजपाई मुख्यमंत्री भी अपने बराबर का मानते थे। अब नये समीकरण में भाजपा से ज्यादा समीकरण मोदी विरोधी बन रहे हैं, इसमें स्वाभाविक रूप से कांग्रेस नेतृत्व कर रही है और इसकी बागडोर सोनिया गाँधी ने खुद संभाल रखी है। कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की ताजपोशी में जिस तरह का माहौल दिखा उससे दिल्ली की राजनीति की बारीकियों की मामूली समझ वाले को भी स्पष्ट नज़र आ गया है कि कांग्रेस की रणनीति अब सोनिया गांधी बना रही हैं। 

शपथ ग्रहण के समारोह में सोनिया गांधी, बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ बेहद दोस्ताना तरीके से मुस्कुराती रहीं, और बातचीत करती रहीं। सोनिया गांधी ने मंच पर ही मायावती को गले लगा लिया, दोनों देर तक एक-दूसरे का हाथ पकड़े रहीं और हंस-हंस के बातें करती रहीं। इसका एक स्पष्ट अर्थ है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की संभावना बहुत ही प्रबल हो गई है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की चुनावी रणनीति के एक प्रभावशाली नेता ने बता दिया है कि मध्यप्रदेश में मायावती से बातचीत शुरू हो चुकी है। छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी इंचार्ज महासचिव, पीएल पुनिया खुद ही मायावती के विश्वासपात्र रह चुके हैं।  

2014 के लोकसभा चुनाव के पहले सभी राज्यों के वे नेता जो कभी मुख्यमंत्री रह चुके थे, नरेंद्र मोदी को एक राज्य के मुख्यमंत्री से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे। मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, जयललिता, करुणानिधि, अशोक गहलौत आदि ने नई दिल्ली में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को बहुत गंभीरता से नहीं लिया था। इसलिए जब नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में घोषित किये गए तो लोगों ने उनको हलके में लिया। सबको विश्वास था कि वे नरेंद्र मोदी को  अपने-अपने राज्यों में जीतने नहीं देंगे। बीजेपी के भी कुछ नेताओं को मुगालता था कि नरेंद्र मोदी उनसे छोटे नेता हैं। इसी चक्कर में जब राजनाथ सिंह ने गोवा में नरेंद्र मोदी को आडवानी गुट की मर्जी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तो  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह आडवानी जी के साथियों ने संसदीय बोर्ड का मेम्बर बना दिया और एक तरह से उनको नरेंद्र मोदी के बराबर साबित करने की कोशिश की।

लोगों का सोचना है कि राहुल गांधी ही संयुक्त विपक्ष के नेता बनेगें। राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव में इस बात की तरफ इशारा भी कर दिया था। लेकिन जो खबरें आ रही हैं, उससे अनुमान लग रहा है कि संयुक्त विपक्ष का प्रधानमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं होगा। विपक्ष की कोशिश  है कि जो पार्टी जहां मज़बूत है, वह वहां लीड पार्टी बने, बाकी लोग सहयोग करें।   बीजेपी के कुछ नेता  चाहते हैं कि विपक्ष की कुछ  पार्टियां एक तीसरा मोर्चा बनाएं। जो उनके और कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करे।  इसके लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव जुट भी गए थे,  लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने इस आइडिया को जन्म लेने  से पहले  ही खत्म कर दिया। ऐसा लगता है कि बीजेपी के खिलाफ जो पार्टियां हैं वे संगठित होंगी लेकिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग गठबंधन होगा। भाजपा के कुछ नेता अपने स्वार्थवश दुरूह संधि भी कर सकते हैं। ये समीकरण भाजपा से ज्यादा नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिखते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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