राहुल गांधी, सिर्फ कर्नाटक नहीं पूरा करियर ही हार गए हैं

उपदेश अवस्थी। कर्नाटक चुनाव से पहले तक कहा जाता था कि राहुल गांधी को फ्रीहेंड नहीं मिलता। यदि फ्रीहेंड मिल जाए तो वो अपने व्यक्तित्व का करिश्मा दिखा सकते हैं परंतु जब से राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है तब से अब तक हुए ज्यादातर फैसले और अब कर्नाटक चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि राहुल में वो बात नहीं जो कांग्रेस जैसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष में होनी चाहिए। सिर्फ गांधी होने के कारण कुर्सी मिल तो सकती है परंतु बनी नहीं रह सकती। इस समय कांग्रेस को एक चमत्कारी व्यक्तित्व की जरूरत है जो नतीजे दिला सके। बातों के जमाखर्च से पार्टी बर्बादी की कगार पर पहुंच गई है, बस 2018 अंतिम साल है। यदि 3 राज्यों में भी यही हाल रहा तो देश में कोई पार्टी का नाम लेने वाला नहीं बचेगा। 

सिर्फ कर्नाटक नहीं पूरा करियर ही हार गए हैं राहुल गांधी

कर्नाटक ने राहुल गांधी को एक साथ कई मोर्चो पर हार का मुंह दिखाया है। पहली हार तो उन्हें भाजपा से मिली, जहां सीधी लड़ाई में उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। दूसरी हार उन्हें विपक्षी दलों के बीच नेतृत्व के मुद्दे पर भी खानी पड़ी है। क्योंकि इस नतीजे के बाद यह तय हो गया है कि भाजपा के खिलाफ लड़ाई में राहुल गांधी सशक्त चेहरा नही हैं। तीसरी हार यह कि 2019 के आम चुनावों को लेकर लंबे समय से विपक्ष को एकजुट करने और उसका नेतृत्व करने की कोशिशों में जुटे राहुल गांधी को अब कोई स्वीकार नहीं करेगा। उनका पूरा अभियान ही मटिया​मेट हो गया। 

खुद कांग्रेसी ही राहुल से सहमत नहीं हैं

वैसे भी कर्नाटक चुनाव में राहुल राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद सिद्धरमैया के सहयोगी की तरह दिखे। एक वक्त पर तो उन्होंने सिद्धरमैया की तुलना मोदी से कर दी थी जिसे लेकर प्रदेश के पार्टी नेताओं में रोष भी था। खुद राहुल ने अपनी हैसियत छोटी कर ली थी। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के लिए वैसे भी कर्नाटक का यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा था, क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी अगुवाई में यह पहला चुनाव था। 

आने वाले 3 राज्यों के चुनाव पर दिखेगा कर्नाटक का असर

ऐसे में वह अपनी पहली ही परीक्षा में फेल साबित हुए है। निश्चित ही इससे पार्टी के उन कार्यकर्ताओं का मनोबल भी कमजोर होगा, जो अपने अध्यक्ष से किसी करिश्मे की उम्मीद लगाकर बैठे थे। कांग्रेस की हार ने पार्टी के अंदर उन विरोधियों को भी मौका दे दिया है जो राहुल की योग्यता को लेकर सवाल उठाते रहे थे। कर्नाटक के इन नतीजों का असर आने वाले तीन राज्यों के चुनावों पर भी देखने को मिलेगा, जहां कांग्रेस के सामने नेतृत्व के भरोसे का एक बड़ा संकट रहेगा।
लेखक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के युवा पत्रकार हैं। 
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