वक्री शनि के कारण देश में अशांति, अग्निकांड, आंदोलन की आशंका: पं.अमर डब्बावाला | JYOTISH

उज्जैन। नवग्रहों में न्याय के देवता कहे जाने वाले शनिदेव 18 अप्रैल को वक्री होंगे। शनि का वक्रत्व काल 6 सितंबर तक रहेगा। शनि के वक्रीय काल का प्रभाव भारतीय समाज पर गहरा नजर आएगा। इस दौरान देश में अशांति, अग्निकांड तथा जातीय आंदोलन की स्थिति बनेगी।ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार वर्तमान में शनिदेव धनु राशि में मंगल के साथ युतिकृत चल रहे हैं। धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। इसलिए इस राशि में शनि का गोचर अनुकूल माना जाता है। 18 अप्रैल को शनि के वक्री होने के बाद वे तीसरी दृष्टि से तुला, 7वीं दृष्टि से मिथुन तथा 10वीं दृष्टि से मीन राशि को देखेंगे। साथ ही सिंह राशि पर नवं-पंचम दृष्टि डालेंगे। इसका प्रभाव विभिन्न रूपों में नजर आएगा। वैसे भी शनि-मंगल की युति समाजिक व आर्थिक दृष्टिकोण से उचित नहीं मानी जाती है। उस पर शनि का व्रकी होना भारतीय समाज पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालेगा। शनि की वक्र दृष्टि से देश में अशांति, अस्थिरता, अग्निकांड, जातीय आंदोलन जैसी घटनाएं घटित होंगी।

खड़ाष्टक योग से बड़ेगी व्याधियां
शनिदेव वक्रत्व काल में शनि-राहु का खड़ाष्टक योग भी बनेगा। यह स्थिति भी देश और समाज के लिए अनुकूल नहीं है। इस योग से पारिस्थितिकी असंतुलन होगा। तापमान में वृद्घि होगी, चर्मरोग उभरेंगे, लोगों को मानसिक कष्ट का अनुभव होगा, अवसाद और खिन्नता भी बढ़ेगी।

शनि की अनुकूलता के लिए यह करें
पं.डब्बावाला के अनुसार जिन जातकों की जन्म पत्रिका में शनि की स्थिति वक्रगत है। जिन राशियों पर शनि की साढ़े साती, ढैया या शनि का विपरीत क्रम चल रहा है, उन जातकों को शनिदेव की उपासना करना चाहिए। शनिदेव के बीज मंत्र का जप करने से राहत मिलेगी।

राष्ट्र शांति के लिए पशु-पक्षियों की सेवा करें
पौराणिक मान्यता के अनुसार देश, काल व परिस्थिति के अनुसार प्रजा पीड़ित हो तो ग्रहों की अनुकूलता के लिए पशु-पक्षियों की सेवा करना चाहिए। गर्मी में पक्षियों के लिए दाने-पानी का इंतजाम करें। प्राकृतिक संतुलन कायम करने के लिए पौधा रोपण कर उसकी देखभाल करना चाहिए। प्याऊ तथा पशुओं के लिए पानी की होद लगाना श्रेयष्कर रहेगा।

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