सिर्फ 1 छात्र के लिए संचालित होता है स्कूल, 50 किमी दूर से आता है शिक्षक | NATIONAL NEWS

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। खर्चे के नाम पर केंद्र सरकार ऐसे सभी स्कूलों को बंद कर रही है जिनमें 10 से कम छात्र हैं। वहीं महाराष्ट्र सरकार मात्र 1 छात्र को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक को प्रतिदिन 50 किलोमीटर दूर भेजती है। 29 वर्षीय शिक्षक रजनीकांत मेंढे नागपुर में रहते हैं जबकि उनकी पदस्थापना भोर के चंदर गांव में है। इस स्कूल में मात्र एक ही छात्र है। रजनीकांत को लगता था कि इस स्कूल को जल्द ही बंद कर दिया जाएगा परंतु सरकार ने ऐसा नहीं किया। शिक्षक 50 किलोमीटर डेली अपडाउन करता है। 

पुणे से करीब 100 किमी दूर इस गांव में 15 झोपड़ियां बनी हैं जहां करीब 60 लोग रहते हैं। पिछले दो साल से गांव के रहने वाले 8 साल के युवराज सांगले गांव के स्कूल में एकमात्र छात्र हैं। स्कूल पहुंचकर मेंढे का पहला काम अपने छात्र को ढूंढना होता है। वह बताते हैं, 'वह अक्सर पेड़ में छिप जाता है। कई बार मुझे उसे पेड़ से उतारकर लाना पड़ता है। मैं उसकी स्कूल के लिए अरुचि को समझ सकता हूं। दरअसल उसे अपने दोस्तों के बिना अकेले ही स्कूल पढ़ने आता है।

सांसद सुप्रिया सूले के निर्वाचन क्षेत्र में आता है गांव
चंदर का उजाड़ काफी गहरा है। नजदीक हाइवे से गांव तक जाने के लिए करीब एक घंटे तक मिट्टी धूल भरे रास्ते पर बाइक चलानी होती है। जब बारिश होती है तो आप इस रास्ते का अंदाजा लगा सकते हैं। कीचड़, फिसलन से इस पर चलना दूभर हो जाता है। यह गांव सांसद सुप्रिया सूले का क्षेत्र है लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वह यहां कभी नहीं आईं। 

कई बच्चों ने छोड़ दिया स्कूल, कुछ करने लगे मजदूरी
रजनीकांत मूलत: नागपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि जब 8 साल पहले उन्होंने पढ़ाना शुरू किया था तो यहां करीब 11 बच्चे पढ़ने आते थे। वे पढ़ने में अच्छे थे लेकिन उच्च शिक्षा की सुविधा यहां से 12 किमी दूर मनगांव में होने की वजह से उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। वह आगे कहते हैं, 'कई लड़कियों को खेतों और फैक्ट्री में मजदूरी के लिए गुजरात भेज दिया गया। मैंने उनके माता-पिता से बार-बार बच्चों को मजदूरी न करवाने और स्कूल में पढ़ाने की सिफारिश की लेकिन एक नहीं सुनी गई।' 

चंदर गांव में यह स्कूल 1985 में बना था। कुछ साल पहले तक यहां छत के बिना सिर्फ चारदीवारी ही थी। छत को ढकने के लिए टिनशेड लगा दिया गया था। रजनीकांत ने बताया, 'एक बार एक सांप स्कूल की छत से मेरे ऊपर गिर गया था। इसके बाद कुछ महीने पहले ही मैं मिट्टी वाले रास्ते पर बाइक चलाते वक्त सांप पर गिर गया था। मुझे नहीं लगता कि अब तीसरी बार मैं बच पाऊंगा।' 

गांव में बिजली न होते हुए भी दी ई-लर्निंग क्लास 
लेकिन इस अध्यापक का शिक्षा के प्रति जो उत्साह और जोश है उसे सलाम करने की जरूरत है। गांव में बिजली न होते हुए भी उन्होंने स्कूल में कुछ तारों को इस्तेमाल करके एक छोटा टीवी सेट लगाया और अपने एकमात्र स्टूडेंट को ई-लर्निंग की सुविधा दी। उन्होंने बताया, '2 साल पहले गांव के अधिकारियों ने हमें 12 वोल्ट का सोलर पैनल दिया था। मैं इसे टीवी चलाने में इस्तेमाल करता हूं। मैंने युवराज का पढ़ाई में इंट्रेस्ट जगाने के लिए दो टेबलेट भी खरीदकर दिए।' 

रजनीकांत कहते हैं, 'दूसरे बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ स्कूल में सीखते हैं और खेलते हैं, लेकिन युवराज के साथ सिर्फ मैं ही हूं। उसके लिए, स्कूल खाली डेस्क के साथ चार दीवारी बन गया है। गांव में सिर्फ गायपालन और पत्थर तोड़कर लोगों का गुजारा होता है। यहां गरीबी काफी ज्यादा है। साथ ही हाइवे से गांव तक का रास्ता काफी लंबा और मुश्किल होने की वजह से यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। मेंढे खुद भी इस गांव में फंसे हुए हैं। एक जिला परिषद अध्यापक पांच साल बाद ट्रांसफर के लिए अप्लाई कर सकता है लेकिन री-लोकेशन वैकेंसी के आधार पर होता है। 
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!