
किसी दल से मुक्ति, साठ साल में कुछ नहीं हुआ जैसे जुमलों से बाहर आकर काम करने के बहुत से क्षेत्र है। अभी तो यह लगता है कि पिछले आम चुनाव में सिर्फ राजनीतिक दल बदला है। अच्छे -बुरे काम तो वैसे ही चल रहे हैं। गति कहीं कम तो कहीं ज्यादा है। देश का दुर्भाग्य है की सारी पार्टी यही करती है, सता में रहे तो पूर्ववर्ती की आलोचना और प्रतिपक्ष में आ जाएँ तो सत्ता की आलोचना। देश के बारे में भी सोचने की फुर्सत निकालिए। बड़े दल, बड़े भवन के साथ बड़ा दिल भी चाहिए जो राष्ट्र हित की हर बात को स्वीकार कर सके। भले ही वह बात प्रतिपक्ष से या समाज की अंतिम पंक्ति से आई हो।
देश को दल नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है। अभी क्या व्यवस्था है ? हमें मालूम था कोई माल्या, कोई मोदी,कोई मेहता. कोई मेहुल गरीब की गाढ़ी कमाई को लेकर गायब होने जा रहा है। घपला कब हुआ यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण वे कारक हैं, जिनके चलते इन्हें फरार होने का मौका मिल गया। सच तो यह है देश को एक ऐसे राजनीतिक दल की जरूरत है, जो किसी धनपशु से चंदा लिए बगैर चल सके। अभी तो सब कांग्रेस हैं किसी का रंग तिरंगा है तो किसी का भगवा तो किसी का लाल। बड़ा भवन, बड़ी व्यवस्था के साथ पिछले दिनों आई एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म की रिपोर्ट का जिक्र भी जरूर कीजिये। सबसे बड़ा चंदा किसे मिला और क्यों मिला ?
यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर लुटियन जोन से बाहर आने में हम अव्वल हैं, तो सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा गठित आयोगों के उन निर्णयों पर से धूल झाडिये, जो राजनीति में पारदर्शिता की बात करते है। यह बात भाजपा के लिए उन सभी दलों के लिए है,जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को अपने मनमाफिक मोड़ लेते है, राष्ट्र हित को ताक पर रख वोट बैंक की खातिर “गुलाटियां” लगाते हैं।
जिन कार्यकर्ताओं के बलिदान से आपको यह दिन देखने को मिला है, माल्या मोदी, मेहुल मामलों से वे ठगे से महसूस कर रहे हैं। फिर से किसी बैंक में यह कहानी न दोहराई जाएँ,इसका पुख्ता इंतजाम करना और जन सामान्य में यह विश्वास कायम करना “यह पार्टी सबसे अलग है”। आपकी प्राथमिकता होना चाहिए। फिर एक बार बधाई के साथ दीनदयाल उपाध्याय के मार्ग पर चलने का आग्रह।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।