राकेश दुबे@प्रतिदिन। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज और यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के अलावा दो स्वतंत्र एजंसियों पीपलस्ट्रांग और वीबॉक्स के संयुक्त सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के नए स्नातकों में रोजगार योग्यता (इम्प्लॉएबिलिटी) ठीक-ठाक बढ़ी है। यह सर्वेक्षण १२० कंपनियों और ५१०००० छात्रों के बीच किया गया। रोजगार योग्यता या नियोजनीयता मैनेजमेंट की भाषा में हाल में ही शामिल हुई एक अवधारणा है।
१९९७में सबसे पहले सुमंत्र घोषाल ने इसे पेश किया था। इसका अर्थ है मूल्य उत्पादक कार्य करना, इसके जरिए धन अर्जन करना और काम करते हुए अपनी क्षमता बढ़ाना ताकि भविष्य में और बेहतर काम मिल सके। प्रचलित अर्थों में हम इसे निपुणता भी कह सकते हैं।भारत में तकनीकी शिक्षा को छोड़कर बाकी अनुशासनों को इसके दायरे से बाहर माना जाता था। यानी इनसे आए ग्रैजुएट सरकारी नौकरियों के सांचे में भले ही फिट हो जाएं, पर उत्पादक कार्यों के लिए वे उपयोगी नहीं होते। बहरहाल, यह सर्वेक्षण बताता है कि अभी हर तरह के स्नातकों में कॉरपोरेट नौकरियों के लायक योग्यता पैदा हुई है। पिछले साल के मुकाबले इस साल इसमें काफी वृद्धि देखी गई है। जैसे, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में२०१५-१६ इम्प्लॉएबिलिटी ४१.६९ प्रतिशत थी, २०१६-१७ में ५०.६९ प्रतिशत थी, जो २०१७ -१८ में ५१.५२ प्रतिशत हो गई। फार्मास्युटिकल्स में यह पिछले साल ४२.३ प्रतिशत थी, जो इस साल ४७.७८ प्रतिशत हो गई। सबसे आश्चर्यजनक उछाल कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस में देखा गया, जहां यह ३१.३६ प्रतिशत से बढ़कर ४३.८५ प्रतिशत हो गई। बीए में यह ३५.६६ प्रतिशत थी जो ३७.३९ प्रतिशत हो गई। एमबीए और बीकॉम की रोजगार योग्यता में गिरावट आई है। इसमें उछाल २०१४ से आना शुरू हुआ, जब यह कुल मिलाकर ३४ प्रतिशत से ४६ प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
सर्वे बताता है कि हर दो नए स्नातकों में से एक रोजगार देने लायक है। इंजीनियरों के बारे में रतन टाटा ने कहा था कि उनमें ज्यादातर रोजगार के लिए अपेक्षित पात्रता नहीं रखते, लेकिन इस सर्वे के अनुसार उनमें से ५२ प्रतिशत रोजगार के लायक हैं। सबसे ज्यादा योग्य कंप्यूटर साइंस पढ़ रहे छात्रों को माना जाता है। सर्वेक्षणकर्ताओं का मानना है कि इधर कई संस्थानों ने बदलते वक्त को पहचान कर अपने कोर्सेज का ढांचा बदला है, इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारा है और अपने स्टूडेंट्स को एंप्लॉएबल बनाने के लिए लीक से हटकर प्रयास किए हैं। इससे सरकार के सामने चुनौती भी बढ़ गई है, क्योंकि एक निपुण वर्कफोर्स बेरोजगारी को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाएगी। फिर भी बहुत खुश नहीं होना चाहिए यह प्रतिशत और सुधरना चाहिए |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।