नई दिल्ली। भारत के पंजाब में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए जलियांवाल बाग नरसंहार का मामला 98 साल बाद फिर सुर्खियों में हैं। ब्रिटिश सरकार ने कहा है कि वो इस हत्याकांड की निंदा करती है परंतु माफी नहीं मांगेगे। बता दें कि लंदन में पाकिस्तान मूल के मेयर सादिक खान ने मांग की थी कि इस हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार को माफी मांगनी चाहिए। ब्रिटेन की सरकार ने इस मामले में मांफी मांगने से इंकार कर दिया है।
हालांकि, विदेश कार्यालय ने चार साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के बयान को दोहराया है, जिसमें उन्होंने जलियांवाला बाग कांड की निंदा करते हुए इसे बेहद शर्मनाक कृत्य बताया था। विदेश कार्यालय ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने 2013 में जलियांवाला बाग के दौरे पर नरसंहार को ब्रिटेन के इतिहास में बेहद शर्मनाक कृत्य करार दिया था। इसके साथ ही उन्होंने इसे ऐसी घटना बताया था जिसे नहीं भूलना चाहिए। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि यह सही है कि हम मृतकों के प्रति सम्मान रखते हैं और घटना को याद रखते हैं। ब्रिटिश सरकार इस घटना की निंदा करती है।
क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड
भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 1000 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।
1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।