ये “BITCOIN” तो एक बला है | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मुम्बई दिल्ली और इंदौर के साथ अब भोपाल में भी  कई ऐसे लोग मौजूद हैं, जिन्होंने  बिटक्वाइन में बड़ी रकम बना ली है। कुछ रिटायर्ड लोग हैं, जिनने रिटायरमेंट पर मिली रकम का कितना बड़ा हिस्सा बिटक्वाइन में लगा दिया। सम्भ्रांत किट्टी पार्टी का विषय बिटक्वाइन से बेहतर निवेश तो कुछ है ही नहीं हो गया है। आखिर यह है क्या ? 2017 के पहले दिन बिटक्वाइन की कीमत थी 1000 डॉलर, यह अब कई जगहों पर 19734 डॉलर पर पहुंच गई है, भोपाल में 1800 डालर चल रही है। यानी करीब 12 महीनों में भारी रिटर्न। इसके मुकाबले भारत में तेजी से ऊपर जाते मुंबई शेयर बाजार सूचकांक को देखें, तो पिछले करीब 12 महीनों में यह 28 प्रतिशत के आसपास बढ़ा है। यह 28 प्रतिशत रिटर्न बिटक्वाइन रिटर्न के सामने कितना बौना सा लगता है। बिटक्वाइन को अक्सर एक करेंसी के तौर पर चिह्नित किया जाता है। पर यह करेंसी नहीं है। करेंसी का कोई जारीकर्ता होता, करेंसी के पीछे कोई गारंटी होती है।

जैसे भारतीय रुपयों के ऊपर लिखा होता है कि मैं धारक को इतने रुपये देने का वचन देता हूं। ऐसी कोई गारंटी बिटक्वाइन के साथ नहीं जुड़ी। फिर बिटक्वाइन क्या कोई संपत्ति है, जैसे शेयर, मकान, बैंक डिपॉजिट, सोना? शेयर किसी कंपनी में हिस्सेदारी होती है, किसी कंपनी में मिल्कियत का एक हिस्सा है। जैसे-जैसे उस कंपनी का कारोबार बढ़ता है, उसका मुनाफा बढ़ता है, वैसे-वैसे उस कंपनी की कीमत बढ़ती जाती है। जब कीमत बढ़ती है, तो उसकी हिस्सेदारी की चाह रखने वालों की संख्या भी बढ़ती है, यानी मांग बढ़ती है। इसलिए अच्छी कंपनियों के शेयर लगातार ऊपर जाते हैं। पर बिटक्वाइन किसी कंपनी में कोई भागीदारी नहीं देती। मकान जैसी कोई भौतिक संपत्ति यह है नहीं। बैंक डिपॉजिट यह है नहीं, कोई बैंक इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। सोना यह है नहीं, तो यह है क्या? यह तकनीक द्वारा तैयार ऐसा उत्पाद है, जिसे लेकर तरह-तरह की गलतफहमियां हैं। सबसे बड़ी गलतफहमी यह कि इसके भाव लगातार ऊपर जाएंगे, हमेशा। जब बिटक्वाइन न शेयर है, न सोना है, न मकान है, न करेंसी है। फिर इसके भाव आसमान क्यों छू रहे हैं? 

मनुष्य की मनोवृत्तियों में से बुनियादी मनोवृत्ति  है- लालच। लालच विवेक की कब्र पर ही उगता है। जहां बड़े समझदार निवेशक कह रहे हैं कि एक साल में सेंसेक्स की करीब 28 प्रतिशत बढ़ोतरी भी सामान्य नहीं है, बिटक्वाइन को निवेश सर्वाधिक रिटर्न माध्यम बताया जा रहा है। लालच के ऐसे नमूने पहली बार नहीं दिखे हैं। वित्तीय इतिहास में दर्ज है कि 17वीं शताब्दी की शुरुआत में ट्यूलिप के फूलों को लेकर ऐसा जुनून लालच नीदरलैंड में देखा गया था। लोगों में यह भरोसा बैठ गया कि ट्यूलिप के फूलों के भाव सिर्फ ऊपर ही जाएंगे। लोगों ने घर गिरवी रखकर ट्यूलिप खरीदे, फिर एक दिन भाव जमीन पर आ गए, और बहुत से लोग बर्बाद हो गए।

किसी भी चीज के भाव बढ़ने के तर्क होने चाहिए। उसकी दुर्लभता, उसकी आपूर्ति, उसकी मांग को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। वरना तो कई बाबा दो मिनट में गहने दोगुने करने के वादे पर माल लेकर चंपत हो जाते हैं। रिजर्व बैंक ने कई बार चेतावनी दी है, जिसका आशय है कि बिटक्वाइन को लेकर स्पष्टता नहीं है। बिटक्वाइन का कारोबार किसी भारतीय अथॉरिटी के दायरे में नहीं है। कल को अगर  बिटक्वाइन डूब जाता है, तो किसकी जिम्मेदारी होगी? हर लालच का अंत छलावे पर होता है। देखना यह है कि अंत कब होता है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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