
लंबे अर्से बाद देश की राजनीति में किसी ने ऐसी बातें देखने में आ रही है है या यूं कहें कि ऐसी बात कहने या आदेश निकालने की जरूरत हुई है। वरना देश में विरोधियों का सम्मान करने की राजनीतिक संस्कृति हमेशा रही है। कांग्रेस की ही नेता इंदिरा गांधी के शासनकाल में विरोधी राजनीतिक नेताओं को जेल तक भेज दिया गया था। इसके बावजूद चुनाव लड़ने और जीतने के बाद भी कभी किसी बड़े नेता ने इंदिरा गांधी के लिए अशोभनीय बातें नहीं कहीं मगर पिछले कुछ समय से देश में ही नहीं, वैश्विक स्तर पर आक्रामक बयानों वाली राजनीति का चलन बढ़ता जा रहा है। इसके प्रभाव में विरोधियों के प्रति तीखी और सस्ती टिप्पणियों को अपने शौर्य प्रदर्शन के रूप में लिया जाने लगा है।
ऐसे शब्द प्रयोग आम जनता में ऐसे नेता की लोकप्रियता जल्दी बन जाती है। लेकिन अक्सर ऐसे नेताओं की काट ज्यादा तीखी और ज्यादा सस्ती टिप्पणी करने वाले नेताओं में देखी जाती है जिससे यह चलन राजनीति का स्तर गिराता चला जाता है। कांग्रेस में भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो ऐसी भाषा के इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं। अक्सर वे ऐसे बयान से राजनीति का ताप बढ़ाते भी रहे हैं। अन्य पार्टियों को भी ऐसे मामलों लिप्त पाया जाता है, लेकिन राहुल गांधी ने अब अपना निश्चित नजरिया बताकर न केवल अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं को आगाह किया है बल्कि देश की राजनीतिक संस्कृति में भी सुधार की एक महत्वपूर्ण पहल की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य पार्टियों के महत्वपूर्ण नेता इस पहल की अहमियत को समझते हुए अपने अनुकूल रुख से इसे मजबूती देंगे। जिससे चुनाव आयोग या किसी एनी संस्था को ऐसे आदेश जारी न करना पड़े कि इस शब्द का इस्तेमाल न करें क्योंकि यह आशोभनीय है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।