भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2018 की प्रशासनिक तैयारियों के आदेश जारी हो चुके हैं। भाजपा साल भर पहले से तैयारी कर रही है। उसके पास सरकारी खजाना भी है। नर्मदा सेवा यात्रा हो या विकास यात्रा सबकुछ चुनावी जमावट के लिए ही है परंतु कांग्रेस की ओर से स्वघोषित सीएम कैंडिडेट ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भी मप्र की पार्ट टाइम पॉलिटिक्स ही कर रहे हैं। सिंधिया अपने प्रतिद्वंदी शिवराज सिंह की तुलना में 20 प्रतिशत समय भी मप्र को नहीं दे रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिए जाने के बाद भी वो मप्र में कांग्रेस को जीत दिला पाएंगे।
गुना लोकसभा सीट से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया यूं तो कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं, लेकिन यदि मप्र की बात की जाए तो उनके पास तुलनात्मक रूप से समय कम है। सांसद रहते हुए भी वो अपने क्षेत्र के संपर्क में रहते हैं लेकिन उनका मूल निवास दिल्ली ही है। मप्र के नागरिकों को उनके दर्शन हेतु किसी विशेष उत्सव या कार्यक्रम का इंतजार करना होता है। पिछले 1 साल में सिंधिया ने मप्र के कई शहरों में दौरे किए और उनकी सभाओं में भीड़ भी आई परंतु सबकुछ क्षणिक ही था। सिंधिया आए और चले गए। मप्र के आम नागरिकों को यदि उनसे मिलना हो तो दिल्ली ही जाना पड़ेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का मप्र में एक अलग ही आकर्षण है। उनकी सभाओं में भीड़ आती है। वो लोगों को बांधने की क्षमता रखते हैं। बावजूद इसके मप्र की कांग्रेस में उनके समर्थकों की संख्या उतनी नहीं है जितनी कि एक सीएम कैंडिडेट के लिए जरूरी है। एक कांग्रेसी दिग्गज का कहना है कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया को फ्री हेंड दे दिया जाए तो उनके पास 230 विधानसभाओं में कैंडिडेट तक नहीं हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि सिंधिया मप्र की राजनीति को पूरा समय नहीं देते। अजीब बात तो यह है कि वो मप्र की जनता को थोड़ा सा समय भी नहीं देते। पिछले एक साल से मीडिया की सुर्खियों में रहने के बाद भी मप्र की परेशान जनता सिंधिया के पास मदद मांगने नहीं पहुंचती।