
जयकिशन महिन्द्रा पूर्व में वे जिस फर्म में कार्य करते थे उसके संचालक तरुण सुराना ने उनका अंतिम संस्कार पंजाबी समाज के रीति रिवाज से कराया था। जयकिशन गरीबी में गुजर-बसर कर रहे थे, उनकी बेटी भोपाल से खर्च के लिए कुछ पैसे भेजती थी। उसी से उनके भोजन और चाय नाश्ते का इंतजाम होता था। उनके निधन पर उस भोजनालय संचालक ने एक दिन दुकान बंद करके शोक जताया जिसके यहां वो नियमित भोजन करते थे परंतु परिवार का कोई सदस्य नहीं आया।
मूलत: उज्जैन के रहने वाले जयकिशन पोहा व्यापारी थे और इसी सिलसिले में 1985 में वारासिवनी में भांजे प्रमोद सूद के साथ आए थे। बाद में वो यहीं रुक गए। कुछ समय बाद भांजा वारासिवनी छोड़कर चला गया लेकिन जयकिशन महिंद्रा उर्फ मामा नहीं गए। तरुण सुराना की मिल में उन्होंने 15 साल तक कार्य किया। 20 नवंबर की शाम को वे खाना लेने होटल नहीं आए तब होटल संचालक 23 नवंबर को उनके घर पहुंचा। काफी आवाज देने के बाद घर का दरवाजा खुलने पर होटल मालिक प्रफुल्ल जैन ने इसे खुलवाया तो जयकिशन महिंद्रा का शव पलंग के नीचे पड़ा मिला।