
यहां जरूरत है सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच विश्वास और भरोसा का। इन दोनों के बीच रिश्ते काफी समय से अस्थिर रहे हैं और हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा कई बड़ी विनिर्माण कंपनियों को भविष्य में निविदा में भागीदारी करने से रोकने की योजना इस हालात को और कठिन बना सकती है। विनिर्माण क्षेत्र को इस वक्त मदद की आवश्यकता है और बीते समय में अनुबंध प्रबंधन और विवाद निस्तारण प्रक्रियाओं को लेकर कई सुझाव दिए गए हैं। जरूरत यह है कि अब इस क्षेत्र को लेकर नौकर-मालिक जैसी धारणाएं त्यागी जाएं और आपस में परस्पर सम्मान का रिश्ता रखा जाए।
भारतमाला को एक किस्म का छोटा प्रोत्साहन मान लिया जाये तो इस परियोजना के दौरान अगले पांच साल तक हर कार्य दिवस पर १४.२ करोड़ रोजगार तैयार होने की उम्मीद है। इसके अलावा इसके अन्य कारकों की मदद से भी अर्थव्यवस्था पर असर होगा। सवाल यह उठता है कि यह छोटा प्रोत्साहन आखिर कितना बड़ा होगा?
क्रिसिल की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत अगले पांच साल में बुनियादी विकास पर करीब ५० लाख रुपये खर्च करेगा। अगर १३ वीं पंचवर्षीय योजना होती तो माना जा सकता है कि इसमें वर्ष २०१७-२०२२ के लिए ७५ लाख करोड़ रुपये का न्यूनतम लक्ष्य होता। यह राशि १२ वीं योजना के ५६ लाख करोड़ रुपये की राशि से करीब १४ प्रतिशत ज्यादा होती।
यह आवंटन सड़क और रेल के मिलेजुले मसले भी उठाता है |क्या भारत सड़क निर्माण को रेलवे की कीमत पर बढ़ावा देते हुए अमेरिका की राह पर बढ़ रहा है? भारतमाला योजना में पांच साल के लिए ६.९० लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है अर्थात प्रतिवर्ष १.३८ लाख करोड़ रुपये। इसमें अगर ग्रामीण तथा अन्य सड़कों को शामिल कर दिया जाए जो अब तक शामिल नहीं हैं तो नतीजा निकलेगा कि भारत अपनी सड़कों और रेल नेटवर्क दोनों पर समान राशि व्यय प्रस्तावित कर रहा है। इससे सड़क और रेल यात्रियों और माल ढुलाई पर क्या असर होगा इसका जवाब खोजना जरूरी है।
सबसे बड़ी चिंता सुरक्षा की है। देश में हर दिन करीब ४०७ लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। ऐसे में सड़क सुरक्षा पर ध्यान दिए बिना इतना बड़ा सड़क निर्माण कार्यक्रम चलाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। इसके लिए एक स्वतंत्र सड़क सुरक्षा एजेंसी बनाना जरूरी है। इससे साथ साथ मौजूदा संहिताओं को प्रासंगिक बनाना, सुरक्षित वाहन चालन सुनिश्चित करना और राजमार्ग सुरक्षा में आधुनिक तकनीक अपनाना जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।