राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2022 में जब भारत विश्व का सबसे युवा देश होगा, तब देश की बागडोर 1980 से 2000 के बीच पैदा हुई इस मिलेनियल पीढ़ी के हाथ होगी। यूँ तो इस पीढ़ी के बारे में ठोस रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन भारत 2022 में जब विश्व का सबसे युवा देश हो जायेगा और तब इसकी औसत उम्र होगी 29 साल। इस आधार पर सोचा जा सकता है कि पांच साल बाद देश पर किसका राज चलने वाला है। यह पीढ़ी “मिलेनियल पीढ़ी” के नाम से जानी जायेगी और इसकी सोच और उपभोग की आदतें कुछ मायनों में पिछली सारी पीढ़ियों से अभी ही एकदम अलग दिखती हैं। उसके लिए भविष्य ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। यह पीढ़ी वर्तमान को पूरी मस्ती के साथ गुजारना चाहती है। किसी चीज का स्वामी होना उसके लिए बड़ी बात नहीं। अहम है उस चीज का सुविधाजनक उपभोग। वह फ्लैट या गाड़ी बुक कराने के लिए नहीं, छुट्टियों का आनंद लेने के लिए पैसे बचाना चाहती है। किराये का घर और ओला-ऊबर जैसी टैक्सी सर्विस उसे ज्यादा मुफीद लगती है।
गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जल्द ही भारत के युवा शेयरिंग इकॉनमी की तरफ बढ़ने वाले हैं। 25 साल बाद कार शेयर करना एक आम चलन बन जाएगा और कार खरीदना असाधारण बात हो जाएगी। वर्क प्लेस तो अभी ही शेयर किए जा रहे हैं, खासकर स्टार्टअप्स के बीच।इस मिलेनियल पीढ़ी को अभिभावकों के साथ रहने में कोई समस्या नहीं है। इस पीढ़ी ने तकनीक के बीच ही आंखें खोली हैं। सेलफोन के जरिए पूरी दुनिया उसकी उंगलियों पर रहती है। उसके सामने उत्पादों के अनेक विकल्प हैं, जिनकी क्वालिटी और मूल्यों की तुलना वह आसानी से कर सकती है। मॉर्गन स्टैनली की एक रिपोर्ट के अनुसार वह दिन दूर नहीं जब मिलेनियल पीढ़ी के बीच स्मार्टफोन की मौजदूगी 100 प्रतिशत होगी और तमाम नौजवान खाने, खरीदारी करने, टिकट बुक कराने के लिए मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल करेंगे।
यह पीढ़ी स्वास्थ्य रक्षा के प्रति जागरूक है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भारी खर्च करने का इरादा रखती है। एक शोध के मुताबिक 36 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय मिलेनियल्स के स्मार्टफोन में फिटनेस ऐप हैं। 45 प्रतिशत चाहते हैं कि वे हर हाल में स्वस्थ रहें। 60 प्रतिशत स्मोकिंग के खिलाफ हैं और 21 प्रतिशत शराब के। मिलेनियल्स पर्यावरण और समाज को लेकर जागरूक हैं। 2017 के डेलॉइट मिलेनियल्स सर्वे के अनुसार, जापान और यूरोप की तुलना में अधिक भारतीय युवाओं ने कहा कि वे अपने पिता से ज्यादा खुश रहेंगे। दरअसल ये उदारीकरण के बाद संपन्न हुए एकल परिवारों के बच्चे हैं, जिन्होंने कार और मकान के जुगाड़ के लिए अपने मां-बाप को अपना हर सुख दांव पर लगाते हुए देखा है। शायद इसीलिए जीवन के मायने इनके लिए बदल गए हैं। इस बदलते परिवेश के भारत के लिए वर्तमान समय कुछ ठोस करने का है। नई पीढ़ी के लिए ही जुट जाएँ, अभी से।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।