नोट बंदी और काले धन की खोज सफल नहीं ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कल आठ नवंबर था। नोट बंदी का एक साल बीत गया। बहुत से लोगों ने बहुत से सवाल खड़े किये, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या वाकई नोटबंदी ने देश में नकदी के इस्तेमाल को किसी भी तरह प्रभावित किया है और सरकार काले धन की खोज में कहाँ तक कामयाब हो पाई है? भोपाल जिले के गाँव बडझिरी की कहानी दूरदर्शन पर है। इसे सरकार ने प्रदेश का सबसे पहला कैशलेस गाँव घोषित किया था, अब वहां कुछ भी कैश लेस नही बचा है। हंडी के चावल की तर्ज़ पर इसे क्या कहें ?

देश के हाल के लिए आरबीआई के आंकड़ों का सहारा लेते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि 28 अक्टूबर, 2016 (नोटबंदी से ठीक पहले वाला पखवाड़ा) तक 17.54 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी। 8 अगस्त, 2017 (ताज़े आंकड़े) 15.46 लाख करोड़ रुपये मूल्य की नकदी चलन में है अर्थात 12 प्रतिशत की गिरावट। भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रचलित नकदी में सालाना बढ़ोतरी का औसत बीते पांच साल में 10 से 17 प्रतिशत के बीच रही है। सामान्य तौर पर यह माना जा सकता है कि प्रचलित नकदी में कम से कम 10 प्रतिशत की वृद्धि एक साल में हुई होगी। नोट बंदी नहीं हुई होती तो प्रचलित नकदी इस वर्ष बढ़कर 19.3 लाख करोड़ रुपये हो गई होती। इस वर्ष अगस्त के आखिर तक प्रचलित नकदी में 20 प्रतिशत की कमी देखने को मिली। यह स्थिति बताती है कि देश की अर्थव्यवस्था में नकदी की कमी हुई है। 

बिना नकदी के लेनदेन की बात करें तो आरबीआई के आंकड़ों को चार व्यापक श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहला रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस), रिटेल इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग जिसमें नैशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर या एनईएफटी और इमीडिएट पेमेंट सर्विस या आईएमपीएस शामिल हैं, क्रेडिट और डेबिट कार्ड तथा प्रीपेड भुगतान के उपाय शामिल हैं। शुरुआत में इनके इस्तेमाल में तेजी आई लेकिन बाद के महीनों में यह धीमी पड़ गई।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०१६-१७ में आरटीजीएस में सालाना 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई जबकि वर्ष २०१५-१६ में यह 11 प्रतिशत थी। खुदरा इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग में भी सालाना आधार पर 45 प्रतिशत की उछाल दर्ज़ हुई जबकि पिछले साल यह 40 प्रतिशत थी। क्रेडिट और डेबिट कार्ड मशीनों के इस्तेमाल में भी ऐसा ही रुख देखने को मिला। वर्ष २०१६-१७ में इनका लेनदेन 65 प्रतिशत बढ़ा जबकि वर्ष २०१५ -१६ में यह बढ़ोतरी केवल 28 प्रतिशत थी। प्रीपेड भुगतान के उपायों में भी 71 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछले वर्ष यह 128 प्रतिशत थी । अब इस रुझान में बदलाव दिख रहा है और नकदी रहित उपायों के इस्तेमाल में वर्ष २०१७ -१८ में गिरावट आई है। उदाहरण के लिए अगर नोटबंदी के पहले यानी अक्टूबर २०१६  से तुलना की जाए तो अगस्त २०१७  में इन चारों श्रेणियों के लेनदेन में भारी कमी आई। 

नोटबंदी के बाद काले धन को सामने लाने की बात करें तो सरकार ने इस दिशा में कुछ प्रगति की है। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने आंकड़ों का विश्लेषण कर संदिग्ध जमा के करीब 17.7 लाख मामले पकड़े हैं। करीब 23,3 लाख बैंक खातों में 3.86 लाख करोड़ रुपये की राशि जमा की गई है। आगे और जांच के जरिये सरकार ने करीब 100,000 उच्च जोखिम वाले मामले पड़ताल के लिए चिह्नित किए हैं। सरकार के कर विभाग तथा अन्य जांच एजेंसियों के पास काले धन की पड़ताल के ढेरों काम हैं। अब यह तो समय ही बताएगा कि सरकार को अपने घोषित लक्ष्य को पूरा करने में कितना वक्त लगेगा। अभी तो आंकड़े कह रहे है जो हुआ ठीक नही था और जो हो रहा है उसकी दिशा पर पुनर्विचार हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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