
सारा देश अब भी इसी विवाद के बीच उलझा हुआ है कि आरुषि को किसने मारा जबकि बड़ा सवाल यह है कि सीबीआई इस मामले की सही जांच क्यों नहीं कर पाई। क्यों उसके सबूत नाकाफी थे। बड़ा सवाल यह है कि जो सीबीआई आरुषि के हत्यारे का पता नहीं लगा पाई, उससे क्या उम्मीद की जाए कि वो व्यापमं जैसे हाईप्रोफाइल घोटाले में हुईं संदिग्ध हत्याओं में सबूत जुटा पाएगी।
आरुषि हत्याकांड में हाईकोर्ट के फैसले से सीबीआई के प्रति लोगों के भरोसे को तोड़ दिया है। जिस सीबीआई ने आरुषि हत्याकांड की छानबीन की थी वही सीबीआई व्यापमं घोटाले से संबद्ध माने जा रहे नम्रता डामोर और इसके जैसी तमाम हत्याओं छानबीन कर रही है। विचारणीय बिन्दु यह है कि आरुषि की हत्या की तुलना में नम्रता हत्याकांड कहीं ज्यादा उलझा हुआ है। दिल्ली के पत्रकार अक्षय की मौत भी इसी तरह रहस्यमयी है। आरुषि मामले में संदिग्धों के पास पॉलिटिकल पॉवर नहीं थी परंतु व्यापमं घोटाले में आरोपियों के पास बड़ी पॉलिटिकल पॉवर है। फिर क्या उम्मीद की जाए कि सीबीआई व्यापमं घोटाले की सारी पर्तें खोल पाएगी।
एक कड़वा सच तो यह भी है कि जब से व्यापमं घोटाला सीबीआई के सुपुर्द हुआ है, सारा मामला ही शांत हो गया। कोई नया खुलासा नहीं हुआ और हाईकोर्ट की निगरानी में एसआईटी ने जो खुलासे किए थे उन पर भी गर्द पड़ती नजर आ रही है।