क्या कश्मीर समस्या का हल अब निकलेगा ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कोई अगर यह पूछे की भारत सरकार की सबसे जटिल समस्या क्या है ? तो एक ही जवाब दिखाई देता है, कश्मीर। देश की सबसे जटिल और अत्यंत संवेदनशील समस्या से मोदी सरकार नए समीकरण से शुरूआत कर रही है। इस बार कश्मीर के समाधान के लिए सरकार ने अब गले लगाने या बातचीत की पहल की है। इस प्रक्रिया में सर्वशक्ति युक्त वार्ताकार नियुक्त किए गये हैं।

खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा का चयन इस हेतु किया गया है। शर्मा की नियुक्ति से केंद्र सरकार की राज्य में शांति बहाली के प्रति संजीदगी भी प्रगट होती है। मसलन; शर्मा को कैबिनेट सचिव का दर्जा दिया जाना है। वे सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार या फिर प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेंगे। इसके अलावा, उन्हें अपनी रपट देने के लिए कोई समय-सीमा नहीं दी गई है। शर्मा की आईपीएस अधिकारी के तौर पर पहली पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में ही हुई थी। सो उन्हें वहां की जमीनी हकीकत का ज्यादा ज्ञान है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि शर्मा को इस बात की पूरी आजादी हासिल होगी कि वह किससे मिले और किससे बातचीत करें ? इसकी पूरी स्वतंत्रता।

यह अलग बात है कि वार्ताकारों को नियुक्त करने का पूर्व की सरकार का अनुभव अलाभकारी सिद्ध रहा है। यूपीए- दो में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर, शिक्षाविद् राधा कुमार और एमएम अंसारी की नियुक्ति और केसी पंत व एनएन वोहरा कमेटी बेअसर साबित हुई है। अब श्री शर्मा कैसे और किस तरह का एजेंडा तय करेंगे और किस-किसको वार्ता के लिए आमंत्रित करेंगे, यह देखने वाली बात होगी?  इस बार यह अच्छी बात है कि राज्य में भाजपा की सहयोगी पीडीपी पूरी कवायद को लेकर उत्साहित दिखती है। इसके विपरीत राज्य की एक अहम सियासी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने अभी से इसमें भंग डालने की कोशिश शुरू कर दी है। उसका अजीब तर्क है कि कश्मीर मसला पूरी तरह से सियासी मसला है और यहां अमन के लिए पाकिस्तान से भी वार्ता की जाए। हुर्रियत के प्रति श्री शर्मा का रुख कैसा रहता है, उससे भी कई गांठें खुलने की उम्मीद है।

इस बार वार्ताकार और सरकार दोनों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि सेना और पुलिस के मनोबल पर कोई विपरीत असर नहीं पड़े। ‘ऑपरेशन ऑलआउट’ में जो कामयाबी सुरक्षाबलों को मिली है, उसी ने केंद्र को वार्ता करने की ताकत और आत्मविश्वास दिया है। अब प्रतीक्षित सवाल यह है की इस नई पहल और नये वार्ताकार से कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की वापसी  कैसे और कब होती है? केंद्र में सत्तासीन होने के बाद गृह मंत्री राजनाथसिंह ने वार्ताकार जैसे प्रयोग से असहमति व्यक्त की थी अब एक बार फिर से उसी रास्ते पर लौटने से सरकार को आगे की दिशा और दशा पर भी विचार करना होगा। यह प्रयास शुभ हो, क्योंकि देश के हित में यही श्रेयस्कर होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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