
इस दिवाली में शिवकासी को लगभग 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। कई सारे कामगारों, खासकर बुजुर्गों के आगे नौकरी जाने का खतरा मंडराने लगा है। कुछ पटाखा निर्माता बहादुरी के साथ पर्यावरण के अनुकूल पटाखे (ग्रीन क्रैकर्स) बनाने के दावे कर रहे हैं, तो वहीं इस कारोबार से जुड़े दूसरे तमाम कारोबारी किसी ऐसे रास्ते की तलाश में हैं, जिससे उन्हें अपना कारोबार जारी रखने में मदद मिल सके। कुल मिलाकर, पटाखा उद्योग में एक अफरा-तफरी का माहौल है, लेकिन साथ ही यह एहसास भी है कि उन्हें अपने इस व्यवसाय को नया रूप देने की जरूरत है। पटाखे बनाने वाली कंपनियों के मुताबिक, यह क्षेत्र तीन लाख प्रत्यक्ष और 10 लाख परोक्ष रोजगार मुहैया कराता है। इससे प्रिंटिंग व पैकेजिंग उद्योग को भी मुनाफा होता है। इसके अलावा, देश भर के लाखों थोक व खुदरा दुकानदारों की आजीविका इस पर आधारित रही है।
इस सब से जरूरी पर्यावरण की रक्षा है। जल थल वायु और ध्वनि प्रदूषण के देश में और भी अनेक कारण हैं। आपके इस फैसले की हिज्जे [अनुवाद] बहुसंख्यक समुदाय विरोधी के रूप में की गई, इस पर भी देश में दो राय हैं। पर मुद्दा एक है सारे प्रकार के प्रदूषण से मुक्ति। फैसले के खिलाफ कुछ लोग पुनर्विचार याचिका की जगह न्यायालय भवन के सामने फटाके फोड़ने गये, पर वे फोड़ नहीं सके, पर पूरी दिल्ली में बहुत फटाके फूटे। शिवाकासी के लोगों के मन में भी गुबार के फटाके हैं, इनकी आवाज़ गूंजे इसके पहले पुनर्विचार जरूरी है। इस पर विचार से ज्यादा जरूरी है, भारी भरकम प्रदूषण मंडलों पर नकेल जो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं। इस सब में माननीय न्यायलय और फिर पुलिस का समय नष्ट होता है और हिज्जे गलत होने के भी खतरे पैदा होते हैं | सादर |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।