
निर्देश में लिखा है कि जनपद पंचायत का पद रिक्त होने व अवकाश की स्थिति में संबंधित पंचायत के विकासखंड अधिकारी को प्रभार दिया जाए। यदि उनका भी पद रिक्त है तो जिले की ऐसी किसी भी पंचायत के विकासखंड अधिकारी को ये दायित्व सौंपा जाएं, जहां सीईओ हो। इनके अलावा जिला पंचायत के अतिरिक्त सीईओ, परियोजना अधिकारी विकास व कार्यक्रम अधिकारी को भी जिम्मेदारी दी जा सकती है। यदि इनमें से भी कोई विकल्प ना मिले तो एसडीएम व डिप्टी कलेक्टर को जनपद पंचायत के सीईओ का प्रभार दें। विशेष ध्यान रखें कि संंबंधित पर जांच लंबित न हो।
निश्चित रूप से जुलानिया की यह पहल देर से ही सही लेकिन दुरुस्त है लेकिन आईएएस जुलानिया के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वो जनपद पंचायतों में पसरे भ्रष्टाचार को कम कर सकें। मध्यप्रदेश में तो हालात यह हैं कि रिश्वत को कमीशन का नाम दे दिया गया है। यह परंपरा बन गई है। बदस्तूर जारी है। शिकायत भी नहीं होती। सरपंच सचिव जिम्मेदारी की तरह कमीशन देते हैं और अफसर अधिकार की तरह कमीशन वसूल करते हैं। शिकायत तो तब होती है जब कमीशन के आंकड़ों में गड़बड़ होती है।