इस महिला ने दिलाए संविदा कर्मचारियों को उनके अधिकार

भोपाल। मप्र संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर सहित महासंघ के पदाधिकारियों ने पत्रकार वार्ता मेें बताया कि मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्ड पीठ की डबलबैंच के मुख्य न्यायधीश संजय यादव व माननीय न्यायधीश एस0के0 अवस्थी के संयुक्त बैंच ने सुनवाई करते हुये राज्य शिक्षा केन्द्र अंतर्गत जिला शिक्षा केन्द्र मुरैना जिले के कस्तुरबा गांधी विद्यालय में शिक्षिका सह सहायक वार्डन के पद संविदा पर कार्यरत सुनीता डांडोलिया के द्वारा बेटी होेने पर 10 दिन का अवकाश लिये जाने पर सेवा समाप्त करने के मामले को लेकर प्रदेश के सभी संविदा कर्मचारियों के लिए 8 पृष्ठ का एक ऐतिहासिक फैसला देते हुये तथा इस फैसले की कापी मप्र के चीफ सेक्रेटरी को भेजते हुये कहा है कि आप यह सुनिश्चित कर लें कि सभी शासकीय विभागों, अर्द्वशासकीय कार्यालयों, निगम- मण्डलों, नगर निगमों, स्थानीय शासन, विधान सभा में पारित कर बनाये गये संस्थानों आदि सभी विभागों में किसी भी महिला संविदा कर्मचारी मातृत्व अवकाश लेने पर इस आधार पर नौकरी से नहीं हटाया जाए कि वे संविदा आधार पर नियुक्त हुई हैं और उनको मातृत्व अवकाश का प्रावधान नहीं है। 

तथा महिला संविदा कर्मचारी को वो सभी लाभ प्रदान किये जायें जो नियमित महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश लेने पर दिये जाते हैं। मातृत्व अवकाश लेने पर उनको सेवा से हटाया नहीं जाए। यह उनका अधिकार है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि संविदा महिला कर्मचारी को सतान पैदा होने पर वह किसी प्रकार से नौकरी के अयोग्य नहीं हो सकती है। यह किसी भी तरह से संविदा शर्तो का उल्लंघन नहीं है। किसी भी महिला का मां बनना उसका संवैधानिक अधिकार है।

हाईकोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषित मानव अधिकारों का हवाला देते हुये कहा है कि विश्व मानव अधिकारों जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948 में स्वीकार किया उसमें महिला के साथ किसी भी प्रकार के भेद-भाव नहीं किया सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य होने के नाते हम उन विश्व मानव अधिकरों को मानने के लिए प्रतिबद्ध हैं जेा किसी भी महिला कर्मचारी के साथ किसी भी प्रकार का भेद-भाव किया जाता हो, चाहे वह संविदा पर ही क्यों ना हो। 

संयुक्त राष्ट्रसंघ के महिला उन्मूलन के अनुच्छेद 11 में पूरी तरह से महिला के साथ किसी भी प्रकार के भेद-भाव के लिए मनाही की गई है। किसी भी महिला कर्मचारी के साथ उसको कार्य के समान अवसर प्रदान किये जाने, कार्य स्थल पर समस्त सामाजिक सुरक्षा व लाभ दिये जाने तथा किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं किये जाने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। यदि हम संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकारों के लिए घोषित पत्र पर जाते हैं तो इस संसार में कार्य करने वाली प्रत्येक महिला को मातृत्व अवकाश उसके वेतन के साथ शुरू करना चाहिए तथा सभी सामाजिक लाभ मिलना चाहिए। और नियमित तथा संविदा कर्मचारी में भेद नहीं करना चाहिए। सभी को समान अवसर, समान काम के लिए समान वेतन दिया जाना चाहिए एवं स्वास्थ्य की देखभाल का अधिकार सहित एवं कार्य करने की स्थितियों की सरुक्षितता का अधिकार जिससे कि वह बच्चा भी शामिल है जिसे कि उसने अपने कार्य करने के दौरान जन्म दिया है।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
ग्वालियर उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में लिखा है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में नई दिल्ली नगर निगम की महिला कर्मचारी जो कि मस्टर रोल पर कार्यरत थी के इसी तरह के मामले में निर्णय दिया गया है कि वह नियमित महिला कर्मचारियों की तरह मातृत्व अवकाश व लाभ प्राप्त करने की हकदार है जो कि नियमित महिला कर्मचारियों को प्रदान किया जाता है। नियमित तथा संविदा महिला कर्मचारियों मे भेद-भाव नहीं किया जा सकता है।

डबलबैंच ने सिंगलबैंच के आदेश को पलटा
हाईकोर्ट की डबलबैंच ने कहा कि हम संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा हमारे हाई अथारटी सुप्रीम कोर्ट के दिये गये फैसलों पर जाते हैं तो सिंगल बैंच के द्वारा दिये गये निर्णय कि - संविदा पर कार्यरत महिला को कार्यालय कलेक्टर द्वारा निकाला गया सही है को बदलते हुये निर्णय देते हैं कि याचिका कर्ता सुनीता डांडोलिया को पुनः नौकरी पर रखा जाए तथा उसे सेवा में रखा ही नहीं जाये बल्कि उसे जबसे हटाया गया है तबसे निरंतर मानते हुये उसका वेतन का एरियस भुगतान किया जाए। 

सिंगल बैंच ने तात्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी के आदेश के आधार पर जिसमें सुनीता डाण्डोलिया को सहायक वार्डन की सेवा शर्तो जिसमें उल्लेख है कि पांच वर्ष से छोटा बच्चा नहीं होना चाहिए का लेख करते हुये पुनः सेवा में नहीं लिये जाने के आदेश के आधार पर सिंगल बैंच ने सुनीता डाण्डोलिया की अपील खारीज कर दी । सिंगल बैंच के आदेश के खिलाफ सुनीता डांडोलियां ने ग्वालियर के वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. जैन के माध्यम् से डबल बैंच में अपील की जिसकी सुनवाई ग्वालियर हाईकोर्ट बैंच के मुख्य न्यायधीश माननीय संजय यादव तथा एस.के. अवस्थी ने सेवा में रखे जाने का तथा समान कार्य समान लाभ देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया । इसे फैसले से प्रदेश की सवा लाख महिला कर्मचारियों का फायदा होगा।

यह था मामला
राज्य शिक्षा केन्द्र के मुरैना जिला शिक्षा केन्द्र के सबलगढ़ में झुण्डपुरा कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास में संविदा पर कार्यरत एक महिला शिक्षिका सह सहायक वार्डन सुनीता डाण्डोलिया को बेटी होने पर उसके द्वारा 10 की छुट्टी का अवकाश का आवेदन दिया। सुनीता डाण्डोलिया ने एक पुत्री को जन्म दिया। दस के दिन के पश्चात् जब वह अपने कार्यस्थल कस्तुरबागांधी छात्रावास में ज्वाईन करने गई तो उसको उसकी वार्डन ने कहा कि आपका अवकाश अमान्य कर दिया गया है। और आपको सेवा से हटा दिया जाता है क्योंकि सहायक वार्डन की शर्तो में था कि पांच साल से छोटा बच्चा नहीं होना चाहिए और आपकी अब एक बेटी हुई है इसलिए आपको हम ज्वाईन नहीं करायेगें। 

मुरैना जिले के जिला परियोजना समन्वयक ने उसकी सेवा समाप्ति की फाईल चलाकर उसकी सेवा समाप्त करवा दी। सेवा समाप्ति के आदेश को उसने कलेक्टर, आयुक्त राज्य शिक्षा केन्द्र, राज्य महिला आयोग, मुख्यमंत्री  आदि सभी जगह अपील की लेकिन किसी ने भी उसकी ना ही बात सुनी ना ही उसकी किसी प्रकार की सहायता की । संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ ने सुनीता डांडोलिया की सहायता कर ग्वालियर में वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के.जैन से मिलवाया तथा डबलबैंच में अपील करने की याचिका तैयार करवाई।

सुनीता डांडोलिया ने सब जगह लगाई गुहार पर नहीं सुनी किसी ने उसकी पुकार
सेवा समाप्ति के खिलाफ सहायक वार्डन सुनीता डाण्डोलिया ने सेवा में वापस रखने के लिए वह अपनी दो महीने की बेटी को गोदी में लिये जिला कलेक्टर मुरैना, भोपाल में आयुक्त राज्य शिक्षा केन्द्र, राज्य महिला आयोग, मुख्यमंत्री निवास तक में पुनः सेवा मे वापसी की गुहार लगाई । लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। एक तो गरीब और अनुसूचित जाति की होने के कारण आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत भी नहीं थी । संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ ने की मदद - हताश निराश सुनीता डांडोलिया ने संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के पास आई । संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ ने ग्वालियर के वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. जैन के पास भेजकर मदद करने को कहा । उन्होंने डबलबैंच में अपील करने की याचिका लगाई ।

सहायक वार्डनों के साथ और समस्याएं भी हैं
24 घंटे की ड्यूटी, पर वेतन मात्र 15500 रू दिया जाता है । कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं, किसी प्रकार का अर्जित अवकाश नहीं है, जिसके कारण अपने घर, परिवार से मिलने भी नहीं जा पाती हैं।  प्रसूति अवकाश भी नहीं, बच्चा होने पर सेवा से हटा दिया जाता है । गर्मी की छुट्टियों में भी अपने घर परिवार के पास नहीं जा सकती हैं । खाली छात्रावास में रहने की बाध्यता। छात्रावास में सहायक वार्डन का कोई कमरा नहीं । छात्राओं के साथ ही रहना पढ़ता है। संविदा पर बने रहने के लिए प्रतिनियुक्ति पद पदस्थ वार्डन, बीआरसी. एपीसी, डीपीसी की कृपा निर्भर । छात्रावास में कुछ भी गलत होने पर जैसे निर्धारित मापदण्डों के अनुसार छात्राओं को भोजन नहीं मिलने पर, गुणवत्ता पूर्वक समान नहीं मिलने पर, किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं कर सकती हैं । शिकायत करने पर तुरंत सेवा से हटा दिया जाता है । छात्रावास में कुछ भी गलत होने पर जैसे निर्धारित मापदण्डों के अनुसार छात्राओं को भोजन नहीं मिलने पर, गुणवत्ता पूर्वक समान नहीं मिलने पर, किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं कर सकती हैं। शिकायत करने पर तुरंत सेवा से हटा दिया जाता है ।

पत्रकार वार्ता में अषोक श्रीवास्तव, अमित कुल्हार, अनूप पटेल, मनोज सक्सेना, अवध कुमार गर्ग, नाहिद जहां, गीता, वी.एस. शेन्डे, रमेष सिंह आदि सुरेष राठौर, संतोष राठौर आदि संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के पदाधिकारी मौजूद थे।

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