देश भक्ति के कुछ पाठ उत्तर कोरिया से भी पढिये

हम भारतीयों को उत्तर कोरिया से देश भक्ति के कुछ सबक सिखने चाहिए। उत्तर कोरिया और उसके सामरिक परीक्षण विश्व को चेतावनी दे रहे हैं। वैसे उत्तर कोरिया के बारे में लोग कम जानते हैं, इसलिए इसके बारे में कोई अनुमान भी मुश्किल है। विश्व के एक कोने में अलग-थलग पड़े इस देश में न कोई पर्यटक जाता है और न विश्व व्यापार के लिए कोई कंपनी। इसने अपने आप को जान-बूझकर बाकी दुनिया से अलग कर रखा है और उत्तर कोरिया नहीं चाहता कि उसके यहां किसी अन्य देश की संस्कृति का प्रवेश हो। वह अपने लोगों को भी मुश्किल से विदेश जाने की इजाजत देता है। कम्युनिस्ट देशों के साथ उनके रिश्ते और आवाजाही है, लेकिन वह भी एक निश्चित सीमा तक ही संभव है। उत्तर कोरिया अपने ढंग का अनोखा देश है, जो अपने देश हितों के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। जो उसकी खासियत है।

इस देश की यही अच्छाइयां कुछ कारणों से विश्व के लिए घातक भी हो सकती हैं। वहां यूरोप या अमेरिका का एक भी व्यक्ति नजर नहीं आता, क्योंकि उत्तर कोरिया को पश्चिमी देशों से सख्त नफरत है। अमेरिका व दक्षिण कोरिया को वे अपना दुश्मन मानते हैं। दक्षिण कोरिया को बात-बात पर भला-बुरा कहते हुए अमेरिका का पिट्ठू बताया जाता है। इस देश में टीवी के नाम पर एकमात्र सरकारी टेलीविजन चैनल है, जिसमें सरकार अपने ढंग से कार्यक्रमों का चयन करके दिखाती है। ज्यादातर कार्यक्रम अपने देश की तारीफ में और पूर्व राष्ट्रपति किम इल सुंग और मौजूदा राष्ट्रपति के गुणगान के होते हैं। 

विदेशी फिल्में दिखाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हां, कभी-कभी रूसी, चीनी और भारतीय फिल्में जरूर दिख जाती हैं। भारतीय फिल्मों में आज भी राज कपूर की पुरानी फिल्में देखने को मिल जाएंगी। दिन भर अपने नेता के बारे में बता-बताकर उत्तर कोरिया के लोगों को ऐसा बना दिया गया है कि उनका दिमाग अपने देश और अपने नेता से आगे कुछ सोच ही नहीं सकता है। कोई भी वाक्य शुरू करने से पहले वहां के लोग अपने राष्ट्रपति की प्रशंसा करते हैं और हर नागरिक उनके चित्र का बैज लगाए रहता है।

राष्ट्रभक्ति इस हद तक हो सकती है, यह कोई उत्तर कोरिया से सीखे। नतीजा यह कि उस देश में अपराध न के बराबर है। हत्या, लूट, चोरी का तो लोग नाम भी नहीं जानते। घरों में ताले तक नहीं लगते हैं। उत्तर कोरिया सरकार का दावा है कि जब हम बाहरी टीवी चैनल और अखबार आने ही नहीं देंगे, तो लोग अपराध सीख ही नहीं पाएंगे। वहां कितना ही बड़ा अफसर या नेता हो, अपने सरकारी दफ्तर से काम खत्म करके आने के बाद वह देखता है कि उसके घर के पास कहीं कोई सरकारी भवन या इमारत तो नहीं बन रही है। वह वहां जाकर दो घंटे देश-सेवा जरूर करेगा। मतलब मुफ्त में मजदूरी करके ईंट, सीमेंट, सरिया ढोकर उस भवन को बनाने में मदद करेगा। इस तरह, अपने काम के अलावा स्वेच्छा से हर शाम दो घंटा हर व्यक्ति देश-सेवा करता है। उत्तर कोरिया की तानाशाही को छोडकर भारत और भारतीय उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

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