
सात आठ पीढ़ी पहले यहां बसे इनके पुरखों ने इन्हें ये सीख दी और आज ये परम्परा की तरह इसका निर्वहन कर रहे हैं। मूलत ये परिवार कई वर्षों पहले बस्ती के बालेडीहा मिश्रा परिवार के ब्राह्मण हैं। उसी परिवार के कुछ परिवार प्रतापगढ़ में आकर बसे लेकिन दरवाजा ना लगाने की रीति को यहां भी जारी रखी। इनका तर्क ये भी है कि इस कुल के कुछ लोग अपने घर में दरवाजा लगाए तो कोई न कोई अनहोनी जरूर हुई है। किसी का पुत्र असमय मौत का शिकार हुआ तो किसी का भाई और किसी का पिता। इतना ही नहीं, दरवाजा उखाड़ फेंकने के बाद फिर सब कुछ सामान्य हो गया।
बता दें, ये हालत है प्रतापगढ़ जिले के पट्टी कोतवाली के सुडामऊ गांव के सभी घरों में ये समानता देखने को मिलती है कि उनमें दरवाजे नहीं हैं। इस गांव में कच्चे, पक्के और झोपड़े हर तरह के तकरीबन सैकड़ों घर हैं। ग्रामीण निशाकान्त मिश्रा ने कहा कि ये बाकी लोगों के लिए चौंकाने वाली बात हो सकती है, लेकिन हमारे लिए ये एक परंपरा बन चुकी है। हम दशकों से बिना दरवाजों के घरों में रह रहे हैं।
गांव में पढ़े लिखे ब्राह्मणों कि आबादी है। जिसमे कोई डॉक्टर, इंजीनियर है तो कोई अधिवक्ता या प्रवक्ता है। ग्रामीण रामचंद्र मिश्रा का कहना है कि आज तक गांव में चोरी डकैती की कोई घटना नहीं हुई है। हमारे घरों की रक्षा नागदेवता करते है इसीलिए हम अपने घरों की चिंता नहीं करते।
इस मामले पर पीयूष कान्त शर्मा (मनोवैज्ञानिक) का कहना है कि आज देश जहां 21वीं सदी में जी रहा है, वहीं समाज में ऐसे लोग भी है जो अंध विश्वास में जी रहे है। इन लोगों को जागरुक करने की जरूरत है। इन्हें डर है कि अगर घर में दरवाजे चौखट लगवा लेंगे तो कही कोई बड़ी अनहोनी न हो जाए।