रांची। वर्षभर के सबसे कठिन और अधिक फलप्रदायी एकादशी व्रत के रूप में विख्यात निर्जला एकादशी का मान पांच जून सोमवार को होगा। इसी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। गंगा एवं नारायणी नदी के संचित जलों से परिपूर्ण, दूध, दही, चंदन, मधु, हल्दी आदि से श्री वेंकटेश्वर का महाभिषेक होगा। खुले हाथ से श्रीबालाजी की हुंडी में लोग चढ़ावा चढ़ाएंगे, जो ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की इस एकादशी से उपवास करके तिरुमल तिरुपति की पूजा और हुंडी में चढ़ावा डालेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे।
कहा जाता है कि एकादशी व्रत करने वालों के पास यमदूत नहीं जाते। अंतकाल में पीतांबरधारी विष्णुदूत आकर उन व्रती भगवान् विष्णु के धाम में ले जाते हैं। भक्त निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, अर्चना, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है।
प्रात: 4:30 बजे से शुरू होगा तिरुमंजनानुरूष्ठान और सात बजे तक चलेगा। इसके बाद आमभक्तों के दर्शन-पूजन के लिए मंदिर का बाहरी द्वार खोल दिया जाएगा। श्रद्धालु प्रात: सात से बारह तथा सांय चार से सात बजे तक दर्शन का लाभ प्राप्त करेंगे।