राहुल गांधी को नेता स्वीकार नहीं करते कमलनाथ, इसलिए भाजपा के संपर्क में थे!

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के दोस्त एवं मप्र की छिंदवाड़ा लोकसभा के सांसद कमलनाथ इन दिनों अपने पेंशन प्लान पर काम कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर सियासत से सन्यास लें। गांधी परिवार से उनका संपर्क वर्षों पुराना है। इंदिरा गांधी ने एक बार उन्हे अपना तीसरा बेटा भी कहा था। उनके बाद राजीव गांधी का कार्यकाल लंबा नहीं रहा परंतु कमलनाथ गांधी परिवार के नजदीक रहे। सोनिया गांधी के आने के बाद कमलनाथ की पकड़ फिर से मजबूत बनी लेकिन राहुल गांधी को वो अपना नेता मानने के लिए तैयार नहीं थे। जब उन्हे पता चला कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपने का फैसला फाइनल है तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का मन बनाया। पिछले दिनों सोनिया गांधी से हुई कमलनाथ की मुलाकात मप्र के संदर्भ में नहीं बल्कि कांग्रेस में राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकारने के संदर्भ में थी। अंतत: कमलनाथ, सोनिया गांधी की बातों से सहमत हो गए। उन्हे आश्वस्त किया गया है कि वो मप्र की कमान संभालेंगे। पहले इस ऐलान की तारीख 15 मई थी, अब बढ़कर 18 मई हो गई है। 

भारत के सबसे बड़े अखबार दैनिक जागरण के दिल्ली एडिशन ने खुलासा किया है कि लोकसभा में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ सांसद कमलनाथ राहुल के नेतृत्व में अपनी सियासी भूमिका निभाने को लेकर सहज नहीं थे। यही वजह थी कि कुछ समय पहले कमलनाथ के भाजपा में जाने की अटकलों ने जोर पकड़ा। मगर पिछले महीने सोनिया गांधी से हुई लंबी मुलाकात के बाद कमलनाथ ने इन अटकलों को खारिज करते हुए मध्यप्रदेश जाने की तैयारी शुरू कर दी।

सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी से हुई इस मुलाकात में कमलनाथ ने राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरी शिद्दत से काम करने का भरोसा दिया। सोनिया से इस चर्चा के कुछ दिन बाद ही कमलनाथ ने राहुल की अगुआई में काम करने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होने का सार्वजनिक रुप से बयान दिया। इसे बाद ही हाईकमान ने कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कमान देने पर गंभीर पहल शुरू की।

राहुल पर भारी पड़ेगी सिंधिया की लोकप्रियता 
ज्योतिरादित्य सिंधिया की राहुल के नेतृत्व को लेकर ऐसी कोई धारणा नहीं रही है। मगर पार्टी नेतृत्व इस बात को लेकर सर्तक है कि सिंधिया कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी के समानांतर न दिखाई दें। वैसे कमलनाथ ही नहीं सिंधिया भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस का चेहरा बनने के इच्छुक हैं। मगर पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर उत्तरप्रदेश के चुनाव तक कांग्रेस की करारी हार के बाद हाईकमान को राज्यों में दमदार ही नहीं संसाधन जुटाने की क्षमता रखने वाले नेताओं की दरकार महसूस हो रही है।

सिंधिया के कारण अटका हुआ है फैसला
ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा में कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह पार्टी का उपनेता बनाया जाना लगभग तय है। हालांकि पार्टी हलकों में उन्हें मल्लिकार्जुन खड़गे की जगह संसदीय दल का नेता बनाने के विकल्प पर भी चर्चा तेज है। खड़गे को हाईकमान ने लोकसभा की अहम लोक लेखा समिति की अध्यक्षता दी है और कर्नाटक के चुनाव में उन्हें विशेष भूमिका देने की बात है। ऐसे में खड़गे को बदलने का निर्णय हुआ तो फिर सिंधिया को संसदीय दल के नेता के रूप में बड़ा प्रमोशन मिलेगा। खड़गे को हटाने में कांग्रेस नेतृत्व के सामने एक ही बाधा है कि वह दलित समुदाय से हैं और लोकसभा में नेता के रुप में उन्होंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है।

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