
पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई और केंद्रीय एजेंसियों की ऐसी छवि बन गई है कि सरकार इनके जरिए विपक्षी दलों को काबू में रखती है। इस धारणा का आधार यह रहा कि कई नेताओं के खिलाफ करप्शन के मामले अचानक ही उठते रहे और फिर ठंडे बस्ते में चले गए। वे मुकाम तक नहीं पहुंच पाए। यही वजह है कि जनता सीबीआई की कार्रवाइयों पर संदेह करने लगी है। बहरहाल सीबीआई का दावा है कि उसने पुख्ता सबूत के आधार पर ही मौजूदा कदम उठाया है। ऐसे में उसे बेरोकटोक अपना काम करना चाहिए और पूरी तत्परता के साथ मामले को अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। इससे उनका मुंह बंद हो जाएगा, जो उस पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन उसकी साख तब और मजबूत होगी, जब वह सभी मामलों में बराबर रूप से सक्रिय दिखेगी। ऐसा न हो कि वह विपक्ष से जुड़े केसों में तो चुस्त-दुरुस्त दिखे, लेकिन सत्तारूढ़ दल से जुड़े मामलों में उसकी चाल मंद पड़ जाए। इसलिए उससे अपेक्षा की जाती है कि वह मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले और ऐसे अन्य केसों में जो बीजेपी सरकारों से जुड़े हैं, शीघ्रता से काम करे और दोषियों को सामने लाए। छापों को लेकर अपोजिशन के आरोपों का सरकार ने दृढ़ता के साथ जवाब दिया है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट कहा कि जांच एजेंसियां ठोस सबूतों के बिना कार्रवाई नहीं करती। जो ऊंचे पदों पर बैठे हैं और जिन्होंने फर्जी कंपनियों की मदद से पैसा बनाया है, उनका मामला कोई छोटा मसला नहीं है।
मोदी सरकार ने शुरू से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। कालेधन पर रोक के लिए वह जो कुछ भी कर सकती थी, उसने किया। उसने विरोध की परवाह न करते हुए नोटबंदी जैसा कदम उठाया। और अब उसने काला धन के खिलाफ ऑपरेशन क्लीन मनी लॉन्च किया है। आयकर विभाग अब छापेमारी की खबरों को वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा। सरकारी एजेंसियां भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे तमाम नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए,चाहे वे किसी भी दल के हों।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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