थावरचंद गहलोत मामला: BJP ने 'पत्रिका' अखबार पर निशाना साधा

Bhopal Samachar
भोपाल। मोदी सरकार में मंत्री थावरचंद गहलोत की मीसाबंदी का मामला तूल पकड़ गया है। उज्जैन में हुई एक शिकायत पर आधारित समाचारों के प्रकाशन पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई है। प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह ने इस खबर के आधार पर संपादकीय लिखने वाले दिग्गज अखबार 'पत्रिका' की संपादकीय पर उंगली उठाई है। नंदकुमार सिंह ने कहा है कि 'यह समाचारों की दुनियां का स्वस्थ मापदंड नहीं है।' सामान्यत: ऐसे मामलों में राजनैतिक दलों की ओर से केवल खबर का खंडन जारी किया जाता है। यह पहली बार है जब भाजपा ने अखबार को निशाने पर लिया है। 

मामला क्या है
उज्जैन में एक मीसाबंदी भाजपा नेता ने शिकायत की है कि थावरचंद गहलोत आपातकाल के दौरान सिर्फ 13 दिन जेल में रहे और उन्होंने मीसाबंदियों को मिलने वाली पेंशन पाने के लिए 54 दिन जेल में रहना बताया है। शिकायत भाजपाई ने की है। यह उनके घर में सुलग रहा संग्राम है। शिकायत हुई है तो खबर भी छपेगी ही लेकिन नंदकुमार सिंह को यह कतई पसंद नहीं आया। उन्होंने खबर का खंडन तो किया ही, पत्रिका जैसे दिग्गज अखबार को भी निशाने पर ले लिया। 

यह रहा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का आधिकारिक बयान 
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद श्री नंदकुमार सिंह चौहान ने पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री श्री थावरचंद गहलोत के बारे में सोशल मीडिया और कतिपय समाचार पत्रों में प्रकाशित सामग्री को भ्रामक और असत्य बताते हुए उसकी कड़ी निंदा की है। श्री चौहान ने कहा कि श्री थावरचंद गहलोत मध्यप्रदेश की राजनीति में शुचिता, सादगी और प्रमाणिकता के लिए जाने जाते हैं। उनके बारे में यदि असत्य और भ्रामक समाचार प्रकाशित किए जाते हैं तो यह समाचारों की दुनियां का स्वस्थ मापदंड नहीं है।

उल्लेखनीय है कि कुछ समाचार एवं सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले लोगों के द्वारा थावरचंद जी के मीसाबंदी होने पर प्रश्न उठाए गए हैं, जो पूर्णतः अनुचित और असत्य है। श्री चैहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में लोकतंत्र सेनानियों को पूर्व में पेंशन देने का जो प्रावधान था उसमें एक माह या उसके आसपास निरूद्ध रहे लोग छूट गए थे। उन 28 लोगों को जो लगभग 1 माह आपातकाल में बंद रहे, उन्हें भी मीसाबंदी पेंशन देने के लिए मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया। इस निर्णय के तहत ही श्री थावरचंद गहलोत को विधिवत पेंशन का पात्र बनाया गया था। श्री गेहलोत तो पूरे 54 दिन तक जेल में रहे थे। श्री थावरचन्द गेहलोत, श्री जगदीश शर्मा के साथ दिनांक 14.11.1975 से 06.01.1976 तक कुल 54 दिन जेल में निरूद्ध रहे। इनके संबंध में अधीक्षक केन्द्रीय जेल उज्जैन के पास अभिलेख भी उपलब्ध है।

उन्होंने बताया कि इस संबंध में श्री मनोहर ऊंटवाल के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ अखबारों की कतरने पोस्ट की गई थी। इस बारे में स्वयं श्री उंटवाल ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि उनके अधीन कर्मचारी से गलती से वह पोस्ट हुई थी। श्री ऊंटवाल ने इस त्रुटि के लिए खेद भी व्यक्त किया है। श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश की राजनीति में श्री गहलोत ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनकी राजनीतिक शुचिता और प्रमाणिकता से समूचा संगठन प्रभावित है। उनके संबंध में किसी भी प्रकार की तथ्यहीन और अनुचित खबरों का भारतीय जनता पार्टी पुरजोर खंडन करती है।

क्या लिखा है पत्रिका ने अपनी संपादकीय में
शर्म आती है उच्च पदों पर बैठे राजनेताओं के कारनामे देखकर, कहीं मंत्री अपने पुत्र-पुत्रियों या रिश्तेदारों को निजी सहायक अथवा विशेषाधिकारी बनाने से परहेज नहीं करते तो कहीं बिना कर्मचारी रखे उनके नाम पर वेतन उठाने तक की खबरें सामने आती हैं। यानी, नेता कुछ पाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते। मध्यप्रदेश के उज्जैन से आई ऐसी एक खबर चौंकाने वाली है। खबर है केन्द्रीय सामाजिक न्यास एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को लेकर। उनके खिलाफ थाने में फर्जी दस्तावेज के आधार पर मीसाबंदी बनने की शिकायत दर्ज हुई है।

शिकायत भी किसी विरोधी दल के नेता ने नहीं बल्कि उनके साथ ही मीसाबंदी रहे एक व्यक्ति ने दर्ज कराई है। आरोप लगाया है कि आपातकाल के दौरान गहलोत 13 दिन जेल में रहे लेकिन मीसाबंदी की पेंशन पाने के लिए उन्होंने जेल में रहने की अवधि 54 दिन बता दी। मीसाबंदी पेंशन पाने के लिए जेल में कम से कम 30 दिन रहने की पात्रता होना जरूरी है। आरोप चूंकि आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे गहलोत के साथी ने लगाया है इसलिए ये और गंभीर हो जाता है। चार बार लोकसभा सदस्य रह चुके केन्द्रीय मंत्री से इस तरह के आचरण की उम्मीद कोई भी नहीं कर सकता।

मामला अभी शिकायत का है। सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी। लेकिन, मामला केन्द्रीय मंत्री से जुड़ा है लिहाजा आरोपों में सच्चाई निकले तो भाजपा को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि दूसरों को भी नसीहत मिल सके। और शिकायत झूठी पाई जाए तो शिकायतकर्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इससे पहले भी मंत्रियों-सांसदों के खिलाफ रेल और हवाई यात्रा के कूपन बेचे जाने के आरोप लग चुके हैं और जांच में सही भी पाए गए हैं।

यहां मुद्दा भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल का नहीं है। मुद्दा उन लोगों की साख का है जो संविधान की शपथ लेकर मंत्री पद पर विराजमान हैं। करोड़ों देशवासियों के लिए कानून बनाने वाले का काम करते हैं।

गहलोत पर करोड़ों देशवासियों को सामाजिक न्याय दिलाने की जिम्मेदारी है। अगर वे या उन जैसे दूसरे नेता सिर्फ अपनी चिंता में ही व्यस्त होने लगे तो बाकी लोगों का क्या होगा? भारतीय जनता पार्टी अपने आपको दूसरों से अलग होने का दावा करती है। गहलोत ने यदि दस्तावेजों में फेरबदल किया है तो पार्टी को दिखाना चाहिए कि वह अपने लोगों पर भी कार्रवाई कर सकती है।
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