चिकित्सा सेवा है, सरकार नही समाज सुरक्षा दे

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के डॉक्टर अपने साथ हुई मारपीट के बाद वह अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। मांग वही है, सुरक्षा की। इसी मांग को लेकर महाराष्ट्र के डॉक्टरों की लंबी हड़ताल खत्म हुए बमुश्किल दस दिन हुए हैं। ऐसे मामलों में सरकार के पास विकल्प सीमित होते हैं। वह सुरक्षा का आश्वासन दे सकती है, घटना के बाद सख्त कार्रवाई कर सकती है लेकिन डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा न हो, यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका उसके पास नहीं होता और यदि है भी तो उसे फौरन लागू करने में अनेक कठिनाई हैं। 

मरीज के साथ रिश्तेदारों को अस्पताल में प्रवेश न देने की शर्त पहली नजर में ही अमानवीय लगती है। इस बारे में कुछ बंदिशें जरूर लगाई जा सकती हैं। आम तौर पर अस्पताल लगाते भी हैं लेकिन यह सुरक्षा का अचूक उपाय नहीं है। मरीज से जबरन दूर किए गए रिश्तेदारों में अप्रिय खबर मिलने पर गुस्सा और ज्यादा भड़क सकता है। इस संदर्भ में निजी और सरकारी अस्पतालों का फर्क भी गौर करने लायक है। प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों को आम तौर पर ऐसी असुरक्षा से नहीं गुजरना पड़ता। मरीज के रिश्तेदारों द्वारा मारपीट या हिंसा की खबरें ऐसे अस्पतालों से कम ही आती हैं। इसकी एक वजह मरीजों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति जुड़ती है। संपन्न लोग नाराजगी की स्थिति में पुलिस और अदालत की मदद लेने की हालत में होते हैं लिहाजा उन्हें तोड़फोड़, मारपीट के जरिए अपना गुस्सा जताने की जरूरत नहीं होती।

दूसरी वजह इन अस्पतालों की निजी सुरक्षा व्यवस्था भी है। इस खास शक्ति समीकरण के चलते प्राइवेट हॉस्पिटल्स से प्राय: वहां के प्रशासन द्वारा मरीजों या उनके रिश्तेदारों के साथ की गई ज्यादती की शिकायतें ही आती हैं। फिर चाहे वह ज्यादा फीस वसूलने का मामला हो, या पूरा पैसा न मिलने तक लाश न सौंपने जैसी बात हो। निजी और सरकारी अस्पतालों में दिखने वाली यह दोनों अतियां इस बात का सबूत हैं कि हमारे समाज में डॉक्टर और मरीज के बीच का अविश्वास हदें पार करता जा रहा है। जरूरत इस अविश्वास को दूर करने की है। डॉक्टर इसके उपाय जरूर सुझा सकते हैं लेकिन उन्हें लागू करने का उद्यम सरकार और अस्पतालों को मिल कर करना होगा। 

डाक्टरों के व्यवहार में सेवा भाव की समाप्ति भी एक बड़ा कारण है। शासकीय चिकित्सा महाविध्यालय और निजी चिकित्सा महाविद्यालय से निकले डाक्टरों में यह फर्क आसानी से दिखता है। कारण सर्व ज्ञात है, जब अस्पताल बाज़ार या बुचडखाने जैसी उपमा पाने लगे तो यह सब होगा ही। रास्ते डाक्टरों के सद्भाव और मरीजों के सम्मान भाव में मौजूद है। जिसे दोनों पक्षों के त्याग और आपसी विश्वास से लाया जा सकता है। अस्पताल कोई अन्य व्यवसाय नही जो कानून के डंडे से चले। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
फेसबुक पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!