बचना संन्यासी, सन्यासिन सा न हो तेरा हाल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। उत्तर प्रदेश के संन्यासी मुख्यमंत्री ने जोर से काम शुरू कर दिया है। पहले ही फरमान से साथी मंत्री और विधायक चक्कर खाने लगे हैं। सबकी सम्पत्ति का ब्यौरा। राजनीति में जाने का एक उद्देश्य भारत में ज्ञात सम्पत्ति की रक्षा और भविष्य के लिए सम्पत्ति का निर्माण भी होता है। वर्तमान में राजनीतिक परिदृश्य में कमजोर आर्थिक स्थिति वाले का टिकट पाना ही मुश्किल है। पूरे देश में अपवादस्वरूप बमुश्किल 2-4 ही ऐसे मंत्री मिलेंगे जिनकी सम्पत्ति हर साल 200 से 400 प्रतिशत न बढती हो। प्रयास करने में कोई बुराई नहीं है। भाजपा को ऐसे प्रयोग करने की आदत है और यह भविष्य के रोडमेप की मजबूरी भी है। मध्य प्रदेश में भी उसने एक संन्यासिन को सत्ता सौपी थी। जैसे आज उत्तर प्रदेश में योगी प्रशासन को हिला रहे हैं, मध्यप्रदेश में  संन्यासिन इससे भी एक कदम आगे थी। खैर !

उत्तर प्रदेश में स्पष्ट जनादेश के बावजूद राज्य के मुखिया के चयन में हुई देरी से साफ है कि बीजेपी के लिए यह आसान नहीं रहा। पार्टी के भीतर इसे लेकर बहस थी। दरअसल उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए राजनीतिक प्रयोगशाला बन गया है, जहां से भावी राष्ट्रीय राजनीति की दिशा भी तय होनी है। इसलिए राज्य के नेतृत्व का स्वरूप 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर तय किया गया है। योगी आदित्यनाथ के चयन के जरिए एक खास संदेश दिया दिया, एक विशेष रणनीति का आधार रखा गया है। उनके साथ केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को डेप्युटी सीएम बनाए जाने का भी अपना एक मकसद है। लेकिन जनता के लिए ये बातें कोई खास मायने नहीं रखतीं। यह ठीक है कि योगी आदित्यनाथ की छवि पारंपरिक राजनेताओं से नहीं मिलती। उनकी भाषा-शैली लोकतांत्रिक मुहावरे को छोड़कर।

मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही था। मुख्यमंत्री बनने से पहले सन्यासिन सांसद थी। मुख्यमंत्री बनते ही प्रशासन की चूलें कसने में ताकत लगाई तो असहज हो गई अपने ही लोगों के लिए। अपने कौन ? किसी भी सरकार बनने के बाद हमेशा सरकार के आसपास रहने वाले नेता और अफसर। यह वह जमात है जो काम करने नहीं देती और किसी भी काम कराने का ठेका लेने, कान भरने, अफवाह फैलाने, और पद की गरिमा की आड़ में सब कुछ करने वाली जमात होती है। योगी जी उत्तर प्रदेश में भी एक बड़ी जमात है। इसके साथ भाजपा को भी सब कुछ करने की आदत है पर ,,,,,! बचिए, संन्यासिन को झंडा लेकर निकलना पड़ा था बकौल सन्यासिन आप उनके भाई है कमंडल लेकर निकलना  पड सकता है। अभी हाथ में राजदंड का डंडा है। इसका प्रयोग शपथ के अनुरूप बिना किसी भेदभाव और पक्षपात के कीजिये। शुभकामना।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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