
व्यक्ति अपने नाम से आरक्षण कराता है और यात्रा करते समय उसके पहचान पत्र की जांच की जाती है। यदि इस व्यवस्था में भी दलालों ने अपने लिए रास्ता ढूंढ़ लिया है, तो रेलवे को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसकी व्यवस्था में अब भी कोई न कोई खामी मौजूद है। ऐसे में, यह कैसे मान लिया जाए कि आधार से ऑनलाइन आरक्षण होने पर कालाबाजारी पूरी तरह रुक जाएगी? वैसे भी, आधार रेल टिकटों की कालाबाजारी का इलाज नहीं हो सकता। कालाबाजारी इसलिए होती है कि जितने लोग रेल से यात्रा करना चाहते हैं, भारतीय रेलवे की उतनी क्षमता नहीं है। अगर बाजार की जरूरत और रेलवे की क्षमता के अंतर को पाट दिया जाए, तो यह कालाबाजारी अपने आप खत्म हो जाएगी। वैसे देश में आधार रजिस्ट्रेशन का विस्तार काफी तेजी से हुआ है, अब तक एक अरब से ज्यादा आबादी को आधार कार्ड जारी किए जा चुके हैं। यानी मोटे तौर पर 25 करोड़ के आस-पास आबादी ऐसी बच गई है, जिसे आधार कार्ड जारी होना अभी बाकी है। लेकिन रेलवे ऐसा तरीका क्यों अपनाना चाहता है, जो आबादी के एक बड़े हिस्से को ऑनलाइन आरक्षण से वंचित कर देगा?
पहले से मौजूद एक नियम यह है कि अगर वरिष्ठ नागरिक उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठाना चाहते हैं, तो उन्हें अपना आधार कार्ड पेश करना होगा या आधार नंबर देना होगा। वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाएं उनका अधिकार हैं, क्या किसी को उसके अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित किया जा सकता है कि उसके पास आधार नहीं है? ऐसे प्रावधान आधार अधिनियम की मूल अवधारणा के ही खिलाफ हैं। यह अधिनियम लोगों तक सब्सिडी, वित्तीय लाभ, और सेवाएं सीधे पहुंचाने के लिए बनाया गया है। इस लिहाज से आधार कार्ड लोगों को सुविधा देने के लिए है, उन्हें सुविधा से वंचित करने के लिए नहीं। अगर पूरे देश के लोग आधार कार्ड के जरिये यात्रा करते हैं, तो रेलवे के पास हर नागरिक का पूरा ब्योरा जमा हो जाएगा कि किसने, कहां और कितनी यात्राएं कीं। टिकटों की कालाबाजारी रोकने जैसा छोटा सा काम न कर पाने वाला रेलवे क्या लोगों की निजता को सुरक्षित रख पाएगा?
आधार परियोजना पिछले एक दशक की सबसे सफल परियोजनाओं में से एक है। यह एक ऐसी परियोजना है, जिसे पूरी दुनिया और खासकर विकासशील देश काफी उम्मीद से देख रहे हैं। आधार एक नई और कुशल दुनिया की ओर कदम बढ़ाने की कोशिश है। दिक्कत यह है कि अगर इस कोशिश को हम पूरी तरह पुराने ढर्रे पर चलने वाली नौकरशाही के हवाले कर देंगे, तो कई तरह के खतरे पैदा हो सकते हैं। आधार जैसी नई चीज के लिए एक एथिक्स या इसका नैतिक आधार बनाने की जरूरत है, ताकि नौकरशाही को इसे कुंठित करने से रोका जा सके। आधार हमारी नई सोच का एक उदाहरण है, लेकिन यह तभी तक उदाहरण रहेगा, जब तक हम इसे गलत परंपराओं में उलझने से बचाए रहेंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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