अरुण अर्णव खरे। बापू पता नहीं क्यूं हमें कुछ अर्से से लग रहा है कि आप स्वयं को इन दिनों बहुत उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। पर यह सच नहीं है बापू- हम आज भी आपको बहुत शिद्दत से याद करते हैं। पिछले 2 अक्टूबर को ही हमने कितने भावभीने तरीके से आपका जन्मदिन मनाया था। पिछले वर्षों की तरह तमाम बड़े-बड़े नेता आपकी समाधि पर श्रद्धा-सुमन चढ़ाने आए थे। कुछ ने तो इस दिन आपका चरखा भी चलाकर देखा था और कुछ ने आपका प्रिए भजन भी गुनगुनाया था।
बापू हम आपको भूले नहीं है। सरकार तक को ठीक से मालूम नहीं कि आपके नाम पर कितने स्कूल, कालेज, भवन, उद्यान, सड़कें, ब्रिज, न्यास और ना जाने क्या क्या हैं। क्या यह आपकी याद को चिरस्थाई बनाने का हमारा आधुनिक नजरिया नहीं है। हम कृतघ्न नहीं हैं बापू हमने आपकी हर चीज को अपनाया है। आपके चश्में तक को हमने राष्ट्र के स्वच्छता अभियान से जोड़ दिया है ताकि लोग साफ-सफाई के बहाने ही आपसे जुड़ाव महसूस करते रहें। किसी कोने मे पड़ा आपका चरखा भी हमने कलेण्डर में छाप कर पुन: चर्चा में ला दिया है। यह भी आपको याद रखने का हमारा अनूठा प्रयास है। नोटों पर तो आपका फोटो हम अर्से से छाप रहें हैं। आपकी उत्तरमुखी फोटो हमने नए नोटों में दक्षिणमुखी करके आपकी स्वीकार्यता बढ़ाई है। नई पीढ़ी भी आपसे विमुख नहीं है। नोटबंदी काल के व्हाट्सएप और ट्विटर के संदेशों को याद कीजिए बापू। किस ह्यूमरस अंदाज में इन बच्चों ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए आपको याद किया था। "नोटों पर बापू का प्रोफाइल पिक्चर बदलने के चक्कर में सरकार ने पूरे देश को लाइन में लगा दिया है। इक्कीसवीं सदी की इस पीढ़ी के इस अंदाज पर आप मुस्कराए तो जरूर होंगे।
शायद आप नाथूराम गोडसे को लेकर दुखी हैं कि लोग आपको भूल-भुलाकर उसके कट-आउट लगाकार उसे सम्मानित करने का स्वांग भरने लगे हैं या फिर विज की बचकानी बातों से आहत हैं जो स्वयं को भक्तश्रेष्ठ कहलाने के चक्कर में आपको ब्राण्ड मानने से इंकार कर रहे हैं। बापू यह तो आप भी मानेंगे कि बुराई हर समय जिंदा रहती है। यदि नहीं रहेगी तो अच्छाई शर्म से ही खत्म हो जाएगी। ये समय तो है ही बुराई के महिमा-मण्डन का। आपने देखा नहीं कि आतंकियों तक के जनाजे में किस तरह लोग उमड़ पड़ते हैं। इन बातों को लेकर आप दुखी रहेंगे तो बापू आप ही बताएं हम क्या कर सकते हैं। हम तो निरीह जनता हैं। आप तो एक थप्पड़ खाकर अपना दूसरा गाल भी आगे कर देते थे। यदि अब कोई ऐसा करेगा तो वह डबल थप्पड़ खाएगा साथ ही पिछवाड़े पर लात भी खा सकता है।
बापू, आपने कलियुग में सतयुगी बनने की प्रेरणा देनी चाही थी। वह तो आपके समय में कुछ पानीदार लोग थे बापू, जिन्होंने आपकी बातें ध्यान से सुन ली थीं और दूसरे गाल पर तमाचा नहीं जड़ा था। अब तो पानीदार चेहरे बचे ही कहां हैं। आप ही सोच कर देखिए, यह तो कलियुग में भी घोर कलियुग का जमाना है। कौन आपकी इस सलाह को मान कर मुश्किल मोल लेगा। पर बापू तुम सच मानो। हम तुम्हें भूले नहीं हैं।
अरुण अर्णव खरे
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